For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

करूँ वंदना आज वागीश्वरी की.......

करूँ वंदना आज वागीश्वरी की, सुनो प्रार्थना माँ हमारी सभी।
भरो ज्ञान का मात भंडार ऐसे, लुटाऊँ जहाँ में न रीते कभी।।
विराजो सदा आप वाणी हमारी, फलीभूत हो कामना माँ सभी।
लिखूँ गीत गाऊँ सुनाऊँ ख़ुशी से, दुलारा जहाँ में कहाऊँ तभी।१।

दिलों में अँधेरा समाया सभी के, उजाला दिलों में करो ज्ञान से।
मुझे मात दो कंठ ऐसा सुरीला, झरे माँ सुधा गीत के गान से।।
करो लेखनी की जरा धार पैनी, निखारो सदा शिल्प के सान से।
कला पक्ष औ भाव दोनों सँवारो, सधे साधना आपके ध्यान से।२।

रिसे जिन्दगी में शुभाशीष ऐसे, ढरे लेखनी औ गिरा में बहे।
करुँ मात आजन्म सेवा कला की, यही पूर्ण हो कामना जी चहे।।
बिराजे शिखी पद्म हंसासिनी माँ,  प्रसन्नानना हस्त वीणा गहे।

अहा! वेद श्वेताम्बरा हस्त सोहे, कृपा दृष्टि माँ पाप सारे दहे ।३।

 

                               - मौलिक व अप्रकाशित

 



Views: 686

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Satyanarayan Singh on February 5, 2017 at 2:47pm

परम आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम 

      प्रस्तुत रचना को जिस तरह से स्वीकार किया है वह मेरे प्रयास को सार्थकता प्रदान करता है. 
आत्मीय अनुमोदन के लिए सादर धन्यवाद 

 आदरणीय रामबली जी के टिप्पणी के सन्दर्भ में भी  आपसे मार्गदर्शन की अपेक्षा है. 

 सादर 

    

   

Comment by Satyanarayan Singh on February 5, 2017 at 2:26pm

आदरणीय रामबली जी सादर प्रणाम.

सर्वप्रथम मेरे  इस प्रयास को सराहने हेतु मैं आपका हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ.

आपकी टिप्पणी के सन्दर्भ में ....

//एक बात कहना चाहूँगा प्रथम सवैये में 'सभी' को दो बार पदांत में बतौर तुकांत रखा गया है जो मुझे त्रुटिपूर्ण लग रहा किन्तु मैं निश्चित रूप से कुछ नही कह सकता इस संदर्भ में अन्य सुधीजनों के प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।//

  आदरणीय आपकी उपरोक्त टिप्पणी द्वारा व्यक्त की शंका बिलकुल सही है. यह बात मुझे भी खटक रही थी किन्तु शब्द तुकांतता के सीमित विकल्प के चलते मुझे मजबूर होकर प्रथम सवैये में 'सभी' को दो बार पदांत में बतौर तुकांत रखना पड़ा.  इसे इसप्रकार कहने का भी  मेंरा प्रयास रहा....

//करूँ वंदना आज वागीश्वरी की, सुनो प्रार्थना माँ हमारी अभी।//

    किन्तु अभी तुकांत का प्रयोग प्रार्थना के साथ अपनी मर्जी थोपने के भाव सा प्रतीत होता अतएव उस प्रयोग से बचता  रहा किन्तु सभी शब्द की तुकांतता का दोहराव  यदि नियमानुसार उचित  न लगता हो  तो  उपरोक्त पंक्तिनुसार संशोधन कैसा रहेगा ?  मेरे विचार से  बालक को माँ से हठ कर मांग मनाने का स्वभावानुसार अधिकार प्राप्त है कृपया इस बारे में आपसे एवं सुधीजनों से मार्गदर्शन अपेक्षित है.

 

    // तीसरे सवैये में चाहे के स्थान पर चहे लिखा है आपने। इस सन्दर्भ में भी थोड़ा आशंकित हूँ। शुद्ध शब्द 'चाहे' होता है। //

   उपरोक्त  सन्दर्भ में प्रस्तुत निम्न संशोधन कैसा रहेगा ? कृपया मार्गदर्शन करें

//करुँ मात आजन्म सेवा कला की, यही कामना आज माँ से कहे//

 

  प्रस्तुति पर सुधिजनो की टिप्पणियाँ सीखने समझने के दृष्टि से बहुत उपयोगी होती है किन्तु यह बात संशोधित रचना पोस्ट करने के बाद मेरे  ध्यान में आयी अतएव मैं इस भूल के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ. आपसे अनुरोध है कि संशोधित रचना पर आप आपनी राय अवश्य दीजियेगा . सादर 

Comment by Satyanarayan Singh on February 5, 2017 at 1:04pm

आदरणीय समर कबीर जी  इस प्रयास को सराहने हेतु आपका बहुत बहुत आभार स्नेह यूँ ही बनाये रखिये सादर 

Comment by रामबली गुप्ता on February 4, 2017 at 11:01pm
आदरणीय सौरभ सर मेरी टिप्पणियों के आधार पर कुछ शंकाएं जो मैंने व्यक्त की है इस बारे में भी कुछ बताएं ताकि मैं भी निश्चित हो सकूँ।सादर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 4, 2017 at 10:56pm

अद्भुत ! इस प्रयास और प्रस्तुति के लिए हृदयतल से शुभकामनाएँ और बधाइयाँ आदरणीय सत्यनारायण जी..

Comment by रामबली गुप्ता on February 4, 2017 at 10:10pm
भाई सत्यनारायण जी बहुत ही सुंदर सवैये पद रचे हैं आपने। वागीश्वरी सवैये का शिल्प साधना अन्य सवैयों के सापेक्ष थोड़ा कठिन होता है किंतु आपने बड़े ही अच्छे से निभाया है शिल्प को इसमें।ढेरों बधाई आपको। एक बात कहना चाहूँगा प्रथम सवैये में 'सभी' को दो बार पदांत में बतौर तुकांत रखा गया है जो मुझे त्रुटिपूर्ण लग रहा किन्तु मैं निश्चित रूप से कुछ नही ख सकता इस संदर्भ में अन्य सुधीजनों के प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी। दूसरा सवैया तो बहुत ही सुंदर बना है। 'जहाँ का' के स्थान पर 'जहाँ की' ज्यादे उपयुक्त लग रहा। एक बार देख लीजियेगा। तीसरे सवैये में चाहे के स्थान पर चहे लिखा है आपने। इस सन्दर्भ में भी थोड़ा आशंकित हूँ। शुद्ध शब्द 'चाहे' होता है। इस बाबत भी एक बार पुनः देखने का निवेदन है। शेष सब शुभ शुभ।सादर
Comment by Samar kabeer on February 1, 2017 at 8:56pm
जनाब सत्यनारायण सिंह जी आदाब,सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
30 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"राखी     का    त्योहार    है, प्रेम - पर्व …"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"दोहे- ******* अनुपम है जग में बहुत, राखी का त्यौहार कच्चे  धागे  जब  बनें, …"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
Wednesday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service