करूँ वंदना आज वागीश्वरी की, सुनो प्रार्थना माँ हमारी सभी।
भरो ज्ञान का मात भंडार ऐसे, लुटाऊँ जहाँ में न रीते कभी।।
विराजो सदा आप वाणी हमारी, फलीभूत हो कामना माँ सभी।
लिखूँ गीत गाऊँ सुनाऊँ ख़ुशी से, दुलारा जहाँ में कहाऊँ तभी।१।
दिलों में अँधेरा समाया सभी के, उजाला दिलों में करो ज्ञान से।
मुझे मात दो कंठ ऐसा सुरीला, झरे माँ सुधा गीत के गान से।।
करो लेखनी की जरा धार पैनी, निखारो सदा शिल्प के सान से।
कला पक्ष औ भाव दोनों सँवारो, सधे साधना आपके ध्यान से।२।
रिसे जिन्दगी में शुभाशीष ऐसे, ढरे लेखनी औ गिरा में बहे।
करुँ मात आजन्म सेवा कला की, यही पूर्ण हो कामना जी चहे।।
बिराजे शिखी पद्म हंसासिनी माँ, प्रसन्नानना हस्त वीणा गहे।
अहा! वेद श्वेताम्बरा हस्त सोहे, कृपा दृष्टि माँ पाप सारे दहे ।३।
- मौलिक व अप्रकाशित
Comment
परम आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम
प्रस्तुत रचना को जिस तरह से स्वीकार किया है वह मेरे प्रयास को सार्थकता प्रदान करता है.
आत्मीय अनुमोदन के लिए सादर धन्यवाद
आदरणीय रामबली जी के टिप्पणी के सन्दर्भ में भी आपसे मार्गदर्शन की अपेक्षा है.
सादर
आदरणीय रामबली जी सादर प्रणाम.
सर्वप्रथम मेरे इस प्रयास को सराहने हेतु मैं आपका हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ.
आपकी टिप्पणी के सन्दर्भ में ....
//एक बात कहना चाहूँगा प्रथम सवैये में 'सभी' को दो बार पदांत में बतौर तुकांत रखा गया है जो मुझे त्रुटिपूर्ण लग रहा किन्तु मैं निश्चित रूप से कुछ नही कह सकता इस संदर्भ में अन्य सुधीजनों के प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।//
आदरणीय आपकी उपरोक्त टिप्पणी द्वारा व्यक्त की शंका बिलकुल सही है. यह बात मुझे भी खटक रही थी किन्तु शब्द तुकांतता के सीमित विकल्प के चलते मुझे मजबूर होकर प्रथम सवैये में 'सभी' को दो बार पदांत में बतौर तुकांत रखना पड़ा. इसे इसप्रकार कहने का भी मेंरा प्रयास रहा....
//करूँ वंदना आज वागीश्वरी की, सुनो प्रार्थना माँ हमारी अभी।//
किन्तु अभी तुकांत का प्रयोग प्रार्थना के साथ अपनी मर्जी थोपने के भाव सा प्रतीत होता अतएव उस प्रयोग से बचता रहा किन्तु सभी शब्द की तुकांतता का दोहराव यदि नियमानुसार उचित न लगता हो तो उपरोक्त पंक्तिनुसार संशोधन कैसा रहेगा ? मेरे विचार से बालक को माँ से हठ कर मांग मनाने का स्वभावानुसार अधिकार प्राप्त है कृपया इस बारे में आपसे एवं सुधीजनों से मार्गदर्शन अपेक्षित है.
// तीसरे सवैये में चाहे के स्थान पर चहे लिखा है आपने। इस सन्दर्भ में भी थोड़ा आशंकित हूँ। शुद्ध शब्द 'चाहे' होता है। //
उपरोक्त सन्दर्भ में प्रस्तुत निम्न संशोधन कैसा रहेगा ? कृपया मार्गदर्शन करें
//करुँ मात आजन्म सेवा कला की, यही कामना आज माँ से कहे//
प्रस्तुति पर सुधिजनो की टिप्पणियाँ सीखने समझने के दृष्टि से बहुत उपयोगी होती है किन्तु यह बात संशोधित रचना पोस्ट करने के बाद मेरे ध्यान में आयी अतएव मैं इस भूल के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ. आपसे अनुरोध है कि संशोधित रचना पर आप आपनी राय अवश्य दीजियेगा . सादर
आदरणीय समर कबीर जी इस प्रयास को सराहने हेतु आपका बहुत बहुत आभार स्नेह यूँ ही बनाये रखिये सादर
अद्भुत ! इस प्रयास और प्रस्तुति के लिए हृदयतल से शुभकामनाएँ और बधाइयाँ आदरणीय सत्यनारायण जी..
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