For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

निस्संकोच कृपाण धरो - (गीत) - मिथिलेश वामनकर

भटकन में संकेत मिले तब अंतर्मन से तनिक डरो।

सब साधन निष्फल हो जाएँ, निस्संकोच कृपाण धरो।

 

व्यर्थ छिपाये मानव वह भय और स्वयं की दुबर्लता।

भ्रष्ट जनों की कट्टरता से सदा पराजित मानवता ।

सब हैं एक समान जगत में, फिर क्या कोई श्रेष्ठ अनुज?

मानव-धर्म समाज सुरक्षा बस जीवन का ध्येय मनुज।

प्रण-रण में दुर्बलता त्यागो, संयत हो मन विजय वरो।

 

शुद्ध पंथ मन-वचन-कर्म से, सृजन करो जनमानस में।

भेदभाव का तम चीरे जो,  दीप जलाओ  अंतस में ।

शब्द-हीनता, श्वास-हीनता लक्षण हैं बस यंत्र मनुज।

मौन समर्थन पर-पीड़ा का, समझो है परतंत्र मनुज।

पराधीन मत रहो, कहा यह- तुम हो ज्योति-प्रपात, झरो।

 

जब संत्रास जगत पर हावी, निर्जन पथ का हर कोना,

जब केवल कर्तव्य पथों पर भाग्य मनुज का हो रोना।

स्वयं लड़ाई लड़नी होगी, तब अपने अधिकारों की।

व्यर्थ प्रतीक्षा कलयुग में है स्वप्नों के अवतारों की ।

तारणहार नहीं है कोई, भवसागर से स्वयं तरो।

 

चाहा बस कल्याण जगत का, कष्ट दिखा कब सम्मुख का?

आहुति प्राणों की देकर बस, किया सदा पोषण सुख का।

सुख का श्रेय प्रकृति को माना, यह दुख मानव निर्मित सा।

शाश्वत सत्य यही है प्रियवर, सृष्टि पटल पर अंकित सा।

सदा कहा- जिस पथ मानवता, उस पथ को प्रस्थान करो।

 

कहाँ लालसा सत्ता सुख की, शांति मनुज की बस चाही।

सकल वेदना जनमानस की, युगपुरुषों की हमराही।

संघर्ष सतत् अंतिम क्षण तक करना है यह बोल रहे।

स्वाभिमान का मूल मन्त्र, बस इतना कहकर खोल रहे-

रंगहीन है निर्जन जीवन, इन्द्रधनुष के रंग भरो।

 

------------------------------------------------------------

(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
------------------------------------------------------------

 

 विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय 'संत सिपाही' गुरु गोविन्द सिंह जी को समर्पित 

Views: 1143

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 6, 2017 at 2:54am

आदरणीय गोपाल सर, प्रस्तुति अवसर विशेष से सम्बंधित होने के कारण अपेक्षाकृत जल्दबाजी वाली है.इसलिए कमियां होगी, इसका अंदेशा था. चूंकि गीत गुनगुनाते हुए लिखता हूँ इसलिए मात्रा त्रुटी की संभावना बनी रहती है. जिन पंक्तियों की ओर आपने ध्यानाकर्षित किया हैं. उनके विषय में निवेदन है-

1-सब हैं एक समान जगत में, क्या ईश्वर को ज्येष्ठ-अनुज?---------> सब हैं एक समान जगत में, फिर क्या कोई श्रेष्ठ-अनुज

2-सत्ता का सुख कब चाहें वें? शांति मनुज की बस चाही।-----------> इस पंक्ति को मूल रूप से बिलकुल वैसा ही लिखा है जैसा आपने सुझाया है. लेकिन बाद में अगली पंक्ति में युगपुरुषों का उल्लेख आने के कारण इसमें संशोधन किया था. किन्तु अब आपका कहना सही है इसे उसी रूप में रखना चाहिए तभी पूरी पंक्ति सही लगेगी. //सत्ता का सुख कब चाहा था, शान्ति मनुज की बस चाही//

//आपके गीत का प्रथम चरण शुरू से आखिर तक आल्हा की भाँति चला है , फिर --------संघर्ष करो, उत्साह भरो- अंतिम क्षण तक यह बोल रहे। में न केवल प्रथम चरण का र्रिदम बदला बल्कि द्वतीय चरण में 16 मात्राएँ हो गयी //

आदरणीय यह गीत आल्हा या वीर छंद में नहीं लिखा है क्योकि आल्हा या वीर में मात्राएँ (16-15) होती है और अंत गुरु-लघु से होता है. यह गीत वास्तव में लावणी (16-14) के अधिक निकट है. यह मात्रिक स्वरुप कुकुभ एवं ताटंक छंद का भी होता है किन्तु उसमें सम चरण के अंत में क्रमशः दो गुरु या तीन गुरु अनिवार्य है. 

गीत का उपसंहार करते करते लय तनिक बहक गई लगता है. आपने सही कहा //संघर्ष करो, उत्साह भरो- अंतिम क्षण तक यह बोल रहे।// में लय बदल गई है और 2 मात्रा भी अधिक हुई है अतः इसमें निम्नानुसार संशोधन किया है-

//संघर्ष सतत् अंतिम क्षण तक, करना है यह बोल रहे।

स्वाभिमान का मूल मन्त्र, बस इतना कहकर खोल रहे-//

आपने प्रस्तुति को इतनी बारीकी से पढ़ा और तदनुरूप त्रुटियों की तरफ ध्यान भी आकर्षित किया. यह मेरे लिए बड़ी बात है. आपके मागदर्शन अनुसार पुनः  प्रयास किया है. इस प्रयास की सराहना और  उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 6, 2017 at 2:54am

आदरणीय समर कबीर जी, इस प्रयास की सराहना और  उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 6, 2017 at 2:54am

आदरणीय सुरेन्द्र जी, इस प्रयास की सराहना और  उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 5, 2017 at 7:50pm

आ० मिथिलेश जी , आपने 16, 14 पर गीत रचा है , कुछ बिंदु विचारणीय है -

1-सब हैं एक समान जगत में, क्या ईश्वर को ज्येष्ठ-अनुज?

2-सत्ता का सुख कब चाहें वें? शांति मनुज की बस चाही।------- कब चाहा था सत्ता का सुख , शांति मनुज की बस चाही

3-आपके गीत का प्रथम चरण शुरू से आखिर तक आल्हा की भाँति चला है , फिर --------संघर्ष करो, उत्साह भरो- अंतिम क्षण तक यह बोल रहे। में न केवल प्रथम चरण का र्रिदम बदला बल्कि द्वतीय चरण में 16 मात्राएँ हो गयी .

आ० आपकी प्रतिभा असंदिग्ध है  यह आपकी जल्दबाजी का परिणाम है . कभी कभी मैं भी ऐसा करता हूँ  पर आपसे सदैव एक  अपेक्षा रहती है इसीलिये इतना कह सका . सादर .

Comment by Samar kabeer on January 5, 2017 at 2:31pm
जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब,संत सिपाही श्री गोविन्द सिंह जी को समर्पित बहुत सुंदर गीत लिखा आपने,इस बहतरीन प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by नाथ सोनांचली on January 5, 2017 at 12:11pm
आदरणीय मिथिलेश जी सादर अभिवादन, आज का यह गीत गुरुगोविन्द सिंह जी के जन्मदिवस पर आपने जो लिखा, अत्यंत ही उम्दा है, कई बार पढने के बावजूद भी हर बार ताज़ी महसूस हो रही है। आप के उत्तरम सर्जना के लिए ह्रदय से आभार

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"शुक्रिया आदरणीय चेतन जी इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए तीसरे का सानी स्पष्ट करने की कोशिश जारी है ताज में…"
6 hours ago
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"संवेदनाहीन और क्रूरता का बखान भी कविता हो सकती है, पहली बार जाना !  औचित्य काव्य  / कविता…"
11 hours ago
Chetan Prakash commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"अच्छी ग़ज़ल हुई, भाई  आज़ी तमाम! लेकिन तीसरे शे'र के सानी का भाव  स्पष्ट  नहीं…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सुरेद्र इन्सान जी, आपकी प्रस्तुति के लिए बधाई।  मतला प्रभावी हुआ है. अलबत्ता,…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ जी आपके ज्ञान प्रकाश से मेरा सृजन समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी"
Wednesday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 182 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल - सीसा टूटल रउआ पाछा // --सौरभ

२२ २२ २२ २२  आपन पहिले नाता पाछानाहक गइनीं उनका पाछा  का दइबा का आङन मीलल राहू-केतू आगा-पाछा  कवना…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"सुझावों को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय सुशील सरना जी.  पहला पद अब सच में बेहतर हो…"
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . .

 धोते -धोते पाप को, थकी गंग की धार । कैसे होगा जीव का, इस जग में उद्धार । इस जग में उद्धार , धर्म…See More
Wednesday
Aazi Tamaam commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"एकदम अलग अंदाज़ में धामी सर कमाल की रचना हुई है बहुत ख़ूब बधाई बस महल को तिजोरी रहा खोल सिक्के लाइन…"
Tuesday
surender insan posted a blog post

जो समझता रहा कि है रब वो।

2122 1212 221देख लो महज़ ख़ाक है अब वो। जो समझता रहा कि है रब वो।।2हो जरूरत तो खोलता लब वो। बात करता…See More
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service