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हसरत को दफनाया जाए-पंकज द्वारा ग़ज़ल

इक ताबूत मंगाया जाए
हसरत को दफनाया जाए

पतझर से पहले पतझर को
उपवन में बुलवाया जाए

ऐसा कर अब चल रे पंकज
मन का ताप बढ़ाया जाए

परिवर्तन का दौर चला है
रिश्तों को ठुकराया जाए

मोती रोको, गर्द जमेगी
पत्तों को समझाया जाए

बहुत हुआ अब शोर शराबा
धड़कन को समझाया जाए

मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 29, 2016 at 11:42pm
आदरणीय सुरेश जी बहुत बहुत आभार
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on November 27, 2016 at 8:59am
आदरणीय पंकज जी बहुत ही सुन्दर गजल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।सादर।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 23, 2016 at 8:34pm
आदरणीय मिथिलेश सर, बहुत बहुत आभार, मक्ता बीच में किसी वजह विशेष से नहीं है
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 23, 2016 at 8:33pm
आदरणीय बाऊजी बहुत बहुत आभार और सादर प्रणाम
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 23, 2016 at 8:33pm
आदरनीय गिरिराज सर सादर आभार
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 23, 2016 at 8:32pm
आदरणीय सुशील सर सादर धन्यवाद

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Comment by मिथिलेश वामनकर on November 22, 2016 at 5:42pm

आदरणीय पंकज जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. 

आपने मक्ता ग़ज़ल के बीच रखा है इसकी कोई ख़ास वज़ह?

Comment by Samar kabeer on November 22, 2016 at 2:39pm
अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 22, 2016 at 2:07pm

आदरणीय पंकज भाई , अच्छी गज़ल हुई है , हार्दिक बधाइयाँ आपको ।

Comment by Sushil Sarna on November 22, 2016 at 1:26pm

इक ताबूत मंगाया जाए
हसरत को दफनाया जाए

वाह बहुत सुंदर आदरणीय पंकज जी .... खूबसूरत भावों से लबरेज़ इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई।

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