For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वागीश्वरी सवैया  [सूत्र- 122×7+12 ; यगण x7+लगा]


करो नित्य ही कृत्य अच्छे जहां में सखे! बोल मीठे सभी से कहो।।
दिलों से दिलों का करो मेल ऐसा, न हो भेद कोई न दुर्भाव हो।।
बनो जिंदगी में उजाला सभी की, सभी सौख्य पाएं उदासी न हो।।
रखो मान-सम्मान माँ भारती का, सदा राष्ट्र की भावना में बहो।।



मत्तगयन्द सवैया [सूत्र-211×7+22 ; भगणx7+गागा]

यौवन ज्यों मकरन्द भरा घट, और सुवासित कंचन काया।
भौंह कमान कटार बने दृग, केश घने सम नीरद-छाया।।
देख छटा मुख की अति सुंदर, पूनम का रजनीश लजाया।
ओष्ठ खिली कलियाँ अति कोमल, देख हिया अलि का हरसाया।।

रचना-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 1140

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by रामबली गुप्ता on October 26, 2016 at 6:30pm
आद0 सौरभ सर आपके मार्गदर्शन एवं शुभेक्षाओं से ही छंदों पर सार्थक प्रयास कर पा रहा हूँ। सादर आभार एवं नमन
Comment by रामबली गुप्ता on October 26, 2016 at 6:25pm
आद0 श्याम नारायण भाई जी सराहना के लिए हृदय से आभार
Comment by रामबली गुप्ता on October 26, 2016 at 6:22pm
आदरणीय वासुदेव भाई जी छंद आपको पसन्द आये मेरा लिखना सार्थक हुआ। हृदय से आभार।
Comment by रामबली गुप्ता on October 26, 2016 at 6:19pm
आदरणीय लक्ष्मण रामानुज जी रचना पर उपस्थित होकर सराहना के लिए हृदय से आभार

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 26, 2016 at 5:54pm

आदरणीय समर साहब, मैं आपका मुरीद यों ही नहीं हो गया हूँ.. :-))

आपकी उत्सुकता और लगन मुझे बरबस ओबीओ का वह दौर याद दिलाती है, जब ओबीओ के सक्रिय सदस्य विधा विशेष में ’ग्रेजुएट’ होने का ’भ्रम’ पाले नहीं दिखते थे. उस दौर का ही परिणाम आज ओबीओ के वरिष्ठ सदस्य के रूप में मंच पर हैं.

ख़ैर.. बहता पानी निर्मला यदि कहा जाता है तो, साहब, समय भी तो बहता हुआ ही होता है. इसकी भी अपनी कलाएँ और अपना विशिष्ट प्रवाह हुआ करता है. 

आदरणीय, ऐसा नहीं है कि सभी छन्द चार पंक्तियों के होते हैं. दोहा, सोरठा, चौपाई, चौपई, उल्लाला आदि छन्द दो पदों (पंक्तियों) के होते हैं. वहीं रोला, सवैया, घनाक्षरी और अनेकानेक छन्द चार पदों (पंक्तियों) के होते हैं. जबकि कुण्डलिया, छप्पय आदि छः पंक्तियों के छन्द हैं.

होने को तो छन्द तीन पंक्तियों और आठ पंक्तियों के भी हुए हैं. सोनेट जैसा छन्द जो कि इटली से ब्रिटेन होता हुआ भारत आया है, वह बारह और चौदह पंक्तियों का होता है. लेकिन ये सभी हिन्दी भाषा में अपनी बहुत ज़ोरदार उपस्थिति नहीं बना पाये हैं. सोनेट पर काम तो हुआ है, लेकिन मुख्य रूप से नाम त्रिलोचन, यानी त्रिलोचन शास्त्री, का ही आता है.

इसी के अनुसार सभी छन्दों की तुकान्तता भी अलग-अलग हुआ करती है. यह बात विशेष रूप से चार पंक्तियो और छः पंक्तियों के छन्दों के लिए कह रहा हूँ.

विश्वास है, आदरणीय, मैं आपकी जिज्ञासा के मर्म को स्पर्श कर पाया.

सादर

Comment by Samar kabeer on October 26, 2016 at 5:28pm

जनाब सौरभ पाण्डेय साहिब,कोशिश करके देखते हैं आपके बताये अनुसार,समूह में लेख भी अवश्य पढेंगे,आपका बहुत बहुत धन्यवाद इस मार्गदर्शन के लिये, बस इतना और बता दीजिये की हर छन्द चार पंक्तियों का ही होगा,या उसे बढ़ाया भी जा सकता है ? 

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 25, 2016 at 4:22pm
आदरणीय रामबली जी दोनों ही सवैये अत्यंत सुंदर बने हैं।
हमारे छंद शास्त्र में एक से एक रत्न भरे हैं आप जैसे गहरे पैठने वाले गुणीजन ही उनको निकाल कर हम सब को उनके रसास्वादन का आनन्द दे सकते हैं। बधाई।
Comment by Shyam Narain Verma on October 25, 2016 at 3:59pm
बहुत ही सुन्दर , बधाई इस प्रस्तुति के लिए आदरणीय

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 25, 2016 at 3:47pm

आदरणीय सुधीजनो ! मेरी बातों का महत्व समझते हुए भाई रामबली ने प्रस्तुत हुई सवैयों के सूत्र डाल दिये हैं. आप तदनुरूप पंक्तियों के विन्यास को समझने का प्रयास करें. 

यथा, 122 (यगण) x7+लघुगुरु (लगा) का अर्थ है, लघु-गुरु-गुरु की सात आवृति के बाद एक लघु और गुरु के विन्यास पर हर पंक्ति सधी होगी. यही वागीश्वरी सवैया का विन्यास है. 

इसी तरह 211 (भगण) x 7+ गुरु-गुरु (गागा)  का अर्थ है, गुरु-लघु-लघु की सात आवृति के बाद दो गुरुओं का होना. अर्थात इसी विन्यास पर सारी पंक्तियाँ सधी होंगी. यही मत्तगयंद सवैया का विन्यास है.

एक आग्रह सुधीजनों से - 

छान्दसिक रचनाएँ कोई इतनी क्लिष्ट नहीं होतीं कि उनको समझने के लिए कोई विशेष मनस अपनाना हो. यगण (122, लघु-गुरु-गुरु) या भगण (211, (लघु-गुरु-गुरु) की आवृति वाले विन्यासों पर हम ग़ज़ल या अन्यान्य विधाओं में रचनाकर्म तो करते ही हैं. 

सर्वोपरि, इन सवैयों का भारतीय छन्द विधान समूह में तफ़्सील से विधान लिखा हुआ है. हम आप सार्थक जानकारी के लिए क्या उन्हें नहीं देख सकते ? क्या इतनी मेहनत नहीं कर सकते ? अवश्य कर सकते हैं, बशर्ते, हम विधाओं के प्रति एकपक्षीय न हो जायें.

सवैया वर्णिक छन्द हैं जिनके गणों की आवृति नियत होती है, ग़ज़लों की तरह. यानी, रचनाकर्मियों को अपनी ओर से पंक्तियों की मात्राओं के अनुसार विन्यास नहीं साधना होता. जैसा कि दोहा छन्द जैसे मात्रिक छन्दों में करना होता है. जब हम दोहा छन्द पर सफल अभ्यास कर सकते हैं ्, तो वर्णिक छन्दों पर अभ्यास तो अत्यंत सरल है. 

सादर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 25, 2016 at 3:31pm

सुंदर भावों की प्रस्तुति | छंद के बारे में अधिक जानकारी नहीं है | सादर बधाई आपको 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service