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तरही ग़ज़ल-सतविन्द्र कुमार राणा

बह्र:122 122 122 122
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नहीं कम हुई मेरी उलझन किसी से
कहाँ मिल सका हूँ अभी तक खुदी से।

है गुरबत ने ओढ़ा ख़ुशी का ये चोला
बहकती है दुनिया लबों की हँसी से।

मुहब्बत बसाती है उनसब घरों को
उजाड़ा किसी ने जिन्हें दुश्मनी से।

मुलाकात होती जरूरी कभी तो
मुहब्बत बढ़ेगी तभी बानगी से।

चढ़ा जा रहा हूँ मैं गुस्से में खुद पर
*उतारे कोई कैसे मुझको मुझी से*।

सितारा करम का चमक जाए ‘राणा’
तो मिट जाए गम सब तेरी जिंदगी से।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 19, 2016 at 6:44am
आदरणीय सुरेश भाई जी आपका स्नेह यूँ ही बना रहे।सादर आभार
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 19, 2016 at 6:43am
आदरणीय समर कबीर जी स्नेहिल सराहना के लिए तहेदिल शुक्रिया।सादर नमन!
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 19, 2016 at 6:42am
आदरणीय रवि शुक्ल जी प्रोत्साहन हेतु तहेदिल आभार सँग नमन!
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 19, 2016 at 6:41am
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ भाई साहब सादर हार्दिक आभार।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 19, 2016 at 6:39am
आदरणीय श्याम नारायण जी,अनुमोदन एवं प्रोत्साहन के लिए सादर आभार!
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 18, 2016 at 12:57pm
आदरणीय सतविंदर भाई जी बहुत ही सुन्दर एवं खूबसूरत गजल के लिए हार्दिक बधाई । सादर ।
Comment by Samar kabeer on October 17, 2016 at 8:36pm
जनाब सतविंदर कुमार'राणा'जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
Comment by Ravi Shukla on October 17, 2016 at 1:32pm

आदरणीय सतविन्‍द्र कुमार जी बहुत बढि़या गजल कही है अापने बहुत बहुत बधाई आपको इस क‍े लिये 

Comment by नाथ सोनांचली on October 17, 2016 at 11:49am
बेहतरीन गजल के लिए बधाई आदरणीय श्री सतविन्द्र कुमार राणा जी
Comment by Shyam Narain Verma on October 17, 2016 at 10:47am
इस लाजवाब, उम्दा ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई 

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