For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ख़्वाबों की लहद ....

ख़्वाबों की लहद ....

ये आंखें
न जाने कितने चेहरे
हर पल जीती हैं
हर चेहरे के
हज़ारों ग़म पीती हैं
मुस्कुराती हैं तो
ख़बर नहीं होती
मगर बरस कर
ये सफर को अंजाम
दे जाती हैं
ज़हन की मिट्टी को
किसी दर्द का
पैग़ाम दे जाती हैं

मेरी तन्हाईयों को
नापते -नापते
न जाने कितने आफ़ताब लौट गए
मेरी तारीकियों में
हर शरर ने
अपना वज़ूद खोया है
हर लम्हा
किसी न किसी लम्हे के लिए
वक्त की चौखट से लिपट
बेआवाज़
बहुत रोया है

ख़्वाबों का
कोई साहिल नहीं होता
शब् भर के
मेहमान होते हैं
सहर के कहर से
अंजान होते हैं
सांस देते हैं
अरमानों को
वक्त के कश्कोल में
ख्वाहिशों के
महकते लोबान होते हैं

मेरी आँखों के
घरौंदों में
हर चेहरे ने
इश्क जताया है
ज़िस्म को नापा है
फिर संग सा
रुख़ अपनाया है
शब् के तमाम साये
हर पल
मेरे ज़िस्म पर
रेंगते महसूस होते हैं

औरत हूँ
कच्ची मिट्टी के गारे सी
हर रूप में ढल जाती हूँ
मुहब्बत की दुनियां में
इश्क की देवी कहलाती हूँ
जिस सागर की
तिश्नगी मिटाती हूँ
उसी के हाथों
लुट जाती हूँ
दुनियावी मुस्कराहट के लिए
कई चेहरे लगाती हूँ
ख़ुद जागती हूँ
मगर
अंधेरों की चादर में
नुचे हुए ज़िस्म को सुलाती हूँ
अंदर की औरत को
थपकियों से सहलाती हूँ
अश्कों के तूफ़ान को
पलकों की रेत पे
सुखाती हूँ
थक जाती हूँ तो
ग्रामोफोन की सुई को
रिकार्ड पर लगा कर
ये गाना उसे सुनाती हूँ
औरत ने जनम दिया मर्दों को
मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
जब जी चाह मसला कुचला
जब जी चाह दुत्कार दिया

उफ़ ! कितनी गहराई है
इन नमनाक से लफ़्ज़ों में
बस यही सोचते सोचते
गहरी होती रात में
ख़्वाबों की लहद में
रूहानी औरत के साथ
ज़िस्मानी औरत को भी
सुला देती हूँ


सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 739

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on October 1, 2016 at 2:25pm

आदरणीय  सुनील प्रसाद(शाहाबादी) जी प्रस्तुति में निहित भावों को आत्मीय सम्मान देने का हार्दिक आभार।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 1, 2016 at 1:11pm

आ. सुशील सरना सर एक पुरूष के लिये स्त्री के मनोभावों को व्यक्त करना आसान नहीं होता, बड़ी सुंदरता से आपने ये कविता रची है, इस भावपूर्ण रचना के लिये बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by Samar kabeer on October 1, 2016 at 10:46am
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत ही शानदार,बहुत गहरी बातें,सोचने पर मजबूर करती इस बहतरीन कविता के लिये दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on October 1, 2016 at 7:27am
वर्तमान सामाजिक विडंबनाओं से व्यथित कवि हृदय का क्रंदन सपष्ट रूप से उभर कर पाठक हृदय को झकझोरती है आपकी ये कविता हार्दिक बधाई इस रचना के लिए आदरणीय सुशील सरना जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .शीत शृंगार
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।।"
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-117
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। लेखन के विपरित वातावरण में इतना और ऐसा ही लिख सका।…"
17 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-117
"उड़ने की चाह आदत भी बन जाती है।और जिन्हें उड़ना आता हो,उनके बारे में कहना ही क्या? पालो, खुद में…"
18 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-117
"हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।प्रेरणा और प्रोत्साहन के शब्द दिल को छू रहे हैं।लघुकथा का विषय तीन…"
18 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-117
"बोलते पन्ने (लघुकथा) : डायरी की जितने पन्नों में विभिन्न रस छोड़ते शब्द जितने भी राग गा रहे थे,…"
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-117
"विषयांतर्गत इतनी गंभीर लघुकथा पढ़ने को मिलेंगी, सोचा न था। बहुत दिनों बाद आपकी लेखनी की इतनी सुंदर…"
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-117
"सादर नमस्कार। हार्दिक बधाई गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन सृजन से करने हेतु जनाब मनन कुमार सिंह जी।"
23 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-117
"मेरी डायरी रात फड़फड़ाहट की ध्वनि से मेरा स्वप्न - भंग हुआ।सामने मेरी डायरी के पन्ने खुले पड़े…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service