For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

खामोश मौसम ....

अपनी ही आवाज़ों के साथ
बैसाखियाँ
आग में जलने लगी

समय
और सुईयों की रफ़्तार
अपनी बेख़ौफ़ चाल के साथ
ज़िन्दा होने का
सबूत देती रही

जज़्बात
हड्डियों की बैसाखियों पर
खामोशियों के लिबास पहने
खुद को ढोते रहे

एक बैसाखी दिल की
किसी शरर की उम्मीद में
तारीकियों से लिपटी
पल पल जलती हुई
ज़ख्मों की तलाशी लेती रही

जलते हुए ख़्वाब
शायद अपनी बैसाखियाँ
भूल गए

और तुम भी तो
अपनी बैसाखी भूल गए
रूहानी ज़िस्म को
वादे की
कैसी बैसाखी दी
कि हर बैसाखी
इस बैसाखी को देखने लगी
चराग़ के मन में
सबा से लड़ती
मेरे दिल की बैसाखी
जलती रही

मैं नहीं जानती
सच
झूठ
वादे
और
कसमों की जलती बैसाखियाँ
क्यों जली
मगर
मेरे ख़्वाबों के जज़ीरों में
उम्मीदों की

जलती बैसाखियों पर
धधकते रहे
जाने कितने
खामोश मौसम

मेरे

फ़ना होने के बाद भी 

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 803

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on October 4, 2016 at 10:26pm

आदरणीय Tasdiq Ahmed Khanजी  रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से मेरा सृजन उपकृत हुआ । आपके इस आत्मीय स्नेह का दिल से आभार। 

Comment by Sushil Sarna on October 4, 2016 at 10:25pm

आदरणीय  सुरेश कुमार 'कल्याण'    जी प्रस्तुति को अपनी स्नेह बरखा से प्रोत्साहित करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on October 4, 2016 at 9:32pm

मोहतरम जनाब सुशील सरना साहिब , जितने अच्छे अलफ़ाज़ उतनी ही खूबसूरत पेश कश , दिल की गहराइयों को छूती एक और सुन्दर कविता ,के लिए दिल से मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं --

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 4, 2016 at 3:17pm
आदरणीय श्री सुशील सरना जी बहुत ही सुन्दर एवं भावात्मक रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें । सादर ।
Comment by Sushil Sarna on October 4, 2016 at 2:04pm

आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी  रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से मेरा सृजन उपकृत हुआ । आपके इस आत्मीय स्नेह का दिल से आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 3, 2016 at 5:50pm

आ. सुशील सरना जी अच्छी रचना हुई है बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by Sushil Sarna on October 3, 2016 at 2:56pm

आदरणीय Kalipad Prasad Mandal     जी प्रस्तुति को अपनी स्नेह बरखा से प्रोत्साहित करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on October 3, 2016 at 2:53pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी  रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से मेरा सृजन उपकृत हुआ । आपके इस आत्मीय स्नेह का दिल से आभार। 

Comment by Sushil Sarna on October 3, 2016 at 2:52pm

आदरणीय समर कबीर साहिब आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया ने सदा मेरे सृजन को प्रोत्साहित किया है। आपके इस आत्मीय स्नेह का दिल से आभार। 

Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 2, 2016 at 4:51pm

मैं नहीं जानती 
सच 
झूठ 
वादे 
और 
कसमों की जलती बैसाखियाँ 
क्यों जली 
मगर 
मेरे ख़्वाबों के जज़ीरों में 
उम्मीदों की

जलती बैसाखियों पर 
धधकते रहे 
जाने कितने 
खामोश मौसम

मेरे

फ़ना होने के बाद भी 

गहन भाव, एक अनुत्तरित प्रश्न को प्रस्तुत करती बहुत सुन्दर कविता के लिए हार्दिक बधाइयाँ  स्वीकार करें आ सुशील सरना जी |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
12 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
12 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
13 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
14 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
17 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
22 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
23 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service