For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल-आरसी भी तरस जाता, तब मुहँ दिखाती हो |

बहर : २१२  २१२  २१२  २१२  २२

ना करो ऐसे↓ कुछ, रस्म जैसे निभाती हो

आरसी भी तरस जाता↓, तब  मुहँ दिखाती हो |

छोड़कर  तब गयी अब हमें,  क्यों रुला/ती हो   

याद के झरने↓ में आब जू, तुम बहाती हो |  

रात दिन जब लगी आँख, बन ख़्वाब आती हो

अलविदा कह दिया फिर, अभी क्यों सताती हो ? 

  

जिंदगी जीये हैं इस जहाँ मौज मस्ती से

गलतियाँ  भी किये याद क्यों अब दिलाती हो |

प्रज्ञ हो  जानती हो कहाँ  दुःखती  रग है

शोक आकुल हुआ जब, मुझे तुम हँसाती हो |

कहती↓ थी  मुँह कभी फेर लूँ तो तभी  कहना

दु:खी हूँ या खफ़ा, तुम नहीं अब मनाती हो  |

वक्सिसे जो मिली प्रेम के तेरे↓ चौखट पर

भूलना चाहता हूँ ,लगे  दिल जलाती हो

  

मौलिक व अप्रकाषित

Views: 618

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 5, 2016 at 7:01am

आदरणीय सुदेश कुमार जी , हौसला अफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया |

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 4, 2016 at 12:29pm
आदरणीय श्री कालीपद जी सुन्दर भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई प्रेषित है । सादर ।
Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 2, 2016 at 5:11pm

आदरणीय गिरिराज जी ,आपने सही कहा ,मुझे मान्य बहर पर ही लिखना चाहिए | दर असल यह मेरा स्वयं का एक प्रयोग था | सादर 

Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 2, 2016 at 5:07pm

आदरणीय रवि शुक्लाजी ,शुक्रिया आपका 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 2, 2016 at 12:37pm

आदरनीय कालीपद भाई , गज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है , आपको हार्दिक बधाइयाँ । आदरनीय अभी आपको मान्य बहर पर प्रयास करना चाहिये ऐसा मुझे लगता है , आप ऐसी बहर को चुने  जिन पर जानकार शुअरा गज़ल कह चुके हैं , ताकि लय पकड़ने मे भी आपको आसानी हो ।

Comment by Ravi Shukla on October 2, 2016 at 9:06am
आदरणीय कालीपद जी ग़ज़ल के प्रयास के लिए बधाई। आदरणीय शिज्जु जी का आशय आपके द्वारा ली गई बह्र के प्रयोग से है, मुतदारिक रुक्ने के सालिम अरकान ही अधिक प्रचलित है अंत में प्रयुक्त 22 का रुक्न इस संशय का कारण हो सकता है ।
Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 1, 2016 at 10:03pm

आदाब आ समीर काबीर साहिब | मैं शकूर साहब से पूछ कर ठीक कर लूँगा | आभार आपका |सादर 

Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 1, 2016 at 10:01pm

आ. शिज्जू "शकूर "जी  आदाब ,  क्या  बहर ही गलत है या अशअर  बेबहर  हो गए हैं ? ज़रा स्पष्ट बताएं तो सुधार  ले | सादर 

Comment by Samar kabeer on October 1, 2016 at 2:46pm
जनाब कालीपद प्रसाद जी आदाब,जनाब शिज्जु शकूर साहिब सही फ़रमा रहे हैं,ग़ज़ल अभी और समय चाहती है,बहरहाल इस प्रयास पर बधाई स्वीकार करें ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 1, 2016 at 1:28pm

आ. कालिपद सर अच्छा प्रयास है बस बह्र को लेकर शंका है, विद्वत जनों का इंतज़ार रहेगा, बहरहाल इस ग़ज़ल के लिए बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"कह-मुकरी * प्रश्न नया नित जुड़ता जाए। एक नहीं वह हल कर पाए। थक-हार गया वह खेल जुआ। क्या सखि साजन?…"
1 hour ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"कभी इधर है कभी उधर है भाती कभी न एक डगर है इसने कब किसकी है मानी क्या सखि साजन? नहीं जवानी __ खींच-…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय तमाम जी, आपने भी सर्वथा उचित बातें कीं। मैं अवश्य ही साहित्य को और अच्छे ढंग से पढ़ने का…"
9 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय सौरभ जी सह सम्मान मैं यह कहना चाहूँगा की आपको साहित्य को और अच्छे से पढ़ने और समझने की…"
11 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"कह मुकरियाँ .... जीवन तो है अजब पहेली सपनों से ये हरदम खेली इसको कोई समझ न पाया ऐ सखि साजन? ना सखि…"
11 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"मुकरियाँ +++++++++ (१ ) जीवन में उलझन ही उलझन। दिखता नहीं कहीं अपनापन॥ गया तभी से है सूनापन। क्या…"
17 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"  कह मुकरियां :       (1) क्या बढ़िया सुकून मिलता था शायद  वो  मिजाज…"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"रात दिवस केवल भरमाए। सपनों में भी खूब सताए। उसके कारण पीड़ित मन। क्या सखि साजन! नहीं उलझन। सोच समझ…"
yesterday
Aazi Tamaam posted blog posts
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' साहब! हार्दिक बधाई आपको !"
Thursday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service