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अगर तुम पूछते दिल से शिकायत और हो जाती I
सदा दी होती जो तुमने शरारत ओर हो जाती II
पहन कर के नकावें जिन पे बरसाते कोई पत्थर ,
वयां तुम करते दुख उनका हिमायत और हो जाती I
कहो जालिम जमाने क्यों मुहव्वत करने वालों पर?
अकेले सुवकने से ही कयामत और हो जाती I
बड़ा रहमो करम वाला है मुर्शिद जो मेरा यारो ,
पुकारा दिल से होता गर सदाकत और हो जाती I
मुझे तो होश में लाकर भी क्यों ना मुस्कराए तुम?
जहां सब कुछ हुआ इतनी इनायत और हो जाती I
दिया होता जो चलना बेटियों को अपने पांवों पर,
न होता वितकरा उनसे रिवायत और हो जाती I
रखा था क्यों छुपा कर प्यार उनसे दिल में यूं 'कंवर'?
अगर इजहार करते तो नफ़ासत और हो जाती I
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
कवीर भाई ,ग़ज़ल पर आपकी निगाह पड़ी,धन्यावादI आपके सुझाव सर माथे Iसुधारने के प्रयास में हूँ I
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