For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

करबटें बदलता हूँ

करबटें बदलता हूँ रात भर मैं गलता हूँ

जख्म दिए औरों ने पर मैं खुद ही सिलता हूँ

 

मुँह मोड़ लिया हो अपनों ने तोड़ दिया हो सपनों ने

हर बार मगर हँसकर सबसे अक्सर मैं मिलता हूँ

 

जिन गलियों में बस शूल मिले यादों की बस कुछ धूल मिले

कभी रहे काशी काबा में हर रोज मैं पैदल चलता हूँ

 

वक्त के इस दौर में निकला मैं जिस भी ओर में

सदा बचा मैं शोलों से पर पानी से मैं जलता हूँ

 

सुबह भी देखी थी निराली पल भर में जो हुई थी काली

जिस धुंध में जग ये सोता है मैं उन रातों में पलता हूँ

 

उस फूल के जैसा मेरा मुकद्दर जो मसल दिया जाता है

अंजाम मुझे भी मालूम है फिर भी हर रोज मैं खिलता हूँ

"मौलिक अप्रकाशित"

Views: 477

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 27, 2016 at 10:26am
आदरणीय श्री अनुपम चौबे जी सुन्दर भावाभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई प्रेषित है । सादर ।
Comment by Samar kabeer on September 26, 2016 at 11:29pm
जनाब अनुपम चौबे जी आदाब,पहली बार आपकी किसी रचना से गुज़र रहा हूँ ,चूँकि आपने रचना पर विधा का नाम नहीं लिखा इसलिये मैं इसे मान लेता हूँ ,इस हिसाब से देखा जाये तो आपका ये प्रयास बहुत अच्छा है लेकिन अभी आपको अभ्यास की बहुत ज़रूरत है,इसके बारे में जानकारी हासिल करने के लिये हमारे मंच पर उपलब्ध 'ग़ज़ल की कक्षा' का लाभ आप ले सकते हैं,मंच का एक नियम यह भी है कि ग़ज़ल के साथ उसके अरकान भी लिखे जाऐं ताकि पढ़ने और समझने वालों के लिये आसानी हो ,उम्मीद है आप आगे भी यह सिलसिला जारी रखेंगे ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 26, 2016 at 8:49pm
बहुत बढ़िया भाव । हार्दिक बधाई आदरणीया ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 26, 2016 at 3:52pm
बहुत बढ़िया भाव पिरोये हैं आपने। सादर हार्दिक बधाई आपको आदरणीय अनुपम चौबे जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 26, 2016 at 3:32pm

अच्छी भावाभिव्यक्ति है 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपसे मिले अनुमोदन हेतु आभार"
yesterday
Chetan Prakash commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"मुस्काए दोस्त हम सुकून आली संस्कार आज फिर दिखा गाली   वाहहह क्या खूब  ग़ज़ल '…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service