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फिर आओ गोपाल [ दोहा गीत जन्माष्टमी पर ]

 

हे पार्थ के सारथी, हे जसुमति के लाल

हरने जन की पीर अब , फिर आओ  गोपाल

 

ध्वस्त किया था कंस का ,इक दिन तुमने मान

निडर हो गया कंस अब ,और हुआ बलवान

घूम रहा है ओढ़ कर ,सज्जनता की खाल

हरने जन की पीर अब ,  फिर आओ  गोपाल

 

पाँचाली के चीर का ,किया खूब विस्तार   

नयनों में भर नीर फिर ,तुमको रही पुकार

अंध सभा में ठोकता , दुःशासन फिर  ताल

हरने जन की पीर अब  ,फिर आओ गोपाल

 

अर्जुन का रथ थाम कर ,दिया कर्म सन्देश

पाँसे अब है फेंकता ,शकुनि बदल कर वेश

हरे गेरुए मोहरे , जमी द्यूत  चौपाल

हरने जन की पीर अब   ,फिर आओ गोपाल

 

मौलिक व् अप्रकाशित  

 

    

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Comment

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Comment by Samar kabeer on August 25, 2016 at 6:08pm
मोहतरमा प्रतिभा पाण्डेय जी आदाब,बहुत बढ़िया दोहा गीत रचा आपने बधाई स्वीकार करें ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 25, 2016 at 5:48pm

आदरनीया प्रतिभा जी , वाह , क्या बात है , बढ़िया दोहा गीत रचा आपने , हार्दिक बदाइयाँ आपको ।

हरने जन की पीर को  ,फिर आओ गोपाल    ---  पीर को , मुझे लगता है   को की ज़रूरत नही है , इसलिये  , पीर अब  पपढ के देखियेगा ,अगर सही लगे तो?

हरने जन की पीर अब  ,फिर आओ गोपाल  --    

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 25, 2016 at 11:24am

वाह्ह्ह्हह बहुत सुन्दर लिखा बहुत बहुत बधाई प्रिय प्रतिभा जी 

Comment by Manan Kumar singh on August 25, 2016 at 9:01am
बहुत बढ़िया आदरणीया,बधाई!

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