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सब में मिट्टी है भारत की (नवगीत)

किसको पूजूँ

किसको छोड़ूँ

सब में मिट्टी है भारत की

 

पीली सरसों या घास हरी

झरबेर, धतूरा, नागफनी

गेहूँ, मक्का, शलजम, लीची

है फूलों में, काँटों में भी

 

सब ईंटें एक इमारत की

 

भाले, बंदूकें, तलवारें

गर इसमें उगतीं ललकारें

हल बैल उगलती यही जमीं

गाँधी, गौतम भी हुए यहीं

 

बाकी सब बात शरारत की

 

इस मिट्टी के ऐसे पुतले

जो इस मिट्टी के नहीं हुए

उनसे मिट्टी वापस ले लो

पर ऐसे सब पर मत डालो

 

अपनी ये नज़र हिकारत की

------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित))

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Comment

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Comment by Shyam Narain Verma on August 1, 2016 at 5:11pm
बहुत खूबसूरत रवां नवगीत है बहुत बहुत बधाई आपको
Comment by जयनित कुमार मेहता on August 1, 2016 at 3:23pm
आदरणीय धर्मेन्द्र जी, बहुत ही खूबसूरत नवगीत रचा है आपने। हार्दिक बधाई स्वीकारें।
Comment by Samar kabeer on August 1, 2016 at 1:43pm
जनाब धर्मेन्द्र कुमार जी आदाब,बेहतरीन नवगीत लिखा आपने बधाई स्वीकार करें ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 1, 2016 at 6:51am
बढ़िया रचना आदरणीय। बधाई ।

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