For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मगर दीवार रिश्तों से कभी ऊँची नहीं होती फिल्बदीह ग़ज़ल (राज )

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२

 

दिलों में दूर रहकर भी कोई दूरी नहीं होती 
किसी का प्यार पाने से बड़ी पूंजी नही होती

कहाँ किसको कोई पूछे यहाँ तो नाम बिकता है 
किसी मजदूर के फन की कोई गिनती नहीं होती

 

मिटाते हैं उसे जालिम नहीं क्या जानते इतना 
कहाँ  होती भला  दुनिया अगर बेटी नहीं होती

 

बुरी हमको अगर लगती लगेगी उसको भी देखो 
किसी के साथ भी हो दिल्लगी अच्छी नहीं होती

 

सदाक़त से भरे वो लफ्ज़ वो अशआर फिक्रो फन
कहाँ अब इस जमाने की ग़ज़ल वैसी नहीं होती

नहीं डरता यहाँ इंसान ये भगवान से भी फिर 
अगर ये देह माटी की यहाँ माटी नहीं होती

 

कहीं इक फूल राहों में कोई भगवान के दर पे 
बड़ा अफ़सोस है किस्मत बड़ी सबकी नहीं होती

 

बना दीवार वो सोचें अलग सब कुछ हुआ उनका 
मगर दीवार रिश्तों से कभी ऊँची नहीं होती

.

मौलिक एवं अप्रकाशित 

 

--------------

Views: 886

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 27, 2016 at 11:11am

आद० गिरिराज  जी आपका बहुत बहुत आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 27, 2016 at 11:10am

आद० अशोक कुमार रक्ताले जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सफल हुआ तहे दिल से आभार आपका |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 27, 2016 at 11:09am

आद० महेंद्र कुमार जी बहुत बहुत शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 27, 2016 at 11:09am

आद० डॉ० आशुतोष जी ,ग़ज़ल पर शिरकत और सुखन नवाज़ी का तहे दिल से शुक्रिया | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 27, 2016 at 11:08am

प्रिय प्रतिभा जी ,ग़ज़ल पर शिरकत और सुखन नवाज़ी का तहे दिल से शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 27, 2016 at 11:07am

आद० समर भाई  जी  आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ |हाँ नेट की समस्या के चलते प्रतुत्तर देने में देरी का खेद है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 26, 2016 at 5:12pm

आदरणीया राजेश जी , अच्छी गज़ल कही आपने , हार्दिक बधाइयाँ आपको ।

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 26, 2016 at 1:44pm

नहीं डरता यहाँ इंसान ये भगवान से भी फिर 
अगर ये देह माटी की यहाँ माटी नहीं होती..............वाह !  वाह ! सही कहा है.

 आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर, बहुत खूबसूरत गजल हुई है.सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by Mahendra Kumar on July 26, 2016 at 7:00am
बहुत ही ग़ज़ल है आदरणीया राजेश मैम। शेर दर शेर दाद क़ुबूल करें, सादर!
Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 24, 2016 at 11:03pm
आदरणीया राज जी मुशायरे के कारन ब्लॉग की रचनाएं नहीं पढ़ सका था सूंदर ग़ज़लहुई है हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर प्रणाम केसाथ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"एक ग़ज़ल  221    1221   1221    12 ये ज़िन्दगी  अहबाब…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर और भावप्रधान गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"सीख गये - गजल ***** जब से हम भी पाप कमाना सीख गये गंगा  जी  में  खूब …"
15 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"पुनः आऊंगा माँ  ------------------ चलती रहेंगी साँसें तेरे गीत गुनगुनाऊंगा माँ , बूँद-बूँद…"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"एक ग़ज़ल २२   २२   २२   २२   २२   …"
21 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"स्वागतम"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service