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ग़ज़ल मनोज अहसास(इस्लाह के लिए)

2122 2122 2122 212

मुस्कुराहट ही सदा मिलती खता के सामने
सारी दुनिया छोटी है माँ की अदा के सामने

छत नहीं मिलती है जिनको एक ऊँचाई के बाद
गिर भी जाती हैं वो दीवारें हवा के सामने

सिर्फ वो ही ढक सकेगा अपनी खुद्दारी का सर
दौलतें प्यारी नहीं जिसको अना के सामने

जिनकी दहशत से सितम से जल रहा सारा जहां
वो भला क्या मुँह दिखायेगें खुदा के सामने

आसमां सी सोच हो और बात हो ठहरी हुई
फिर ग़ज़ल मंज़ूर होती है दुआ के सामने

तेरे होठों से जो सुन लूँ इश्क में डूबी ग़ज़ल
ये इनायत है बड़ी मेरी वफ़ा के सामने

किस लिए तुम खोलते हो मेरे मर्ज़ो की किताब
नाम उसका ही लिखा है हर दवा के सामने

हर जगह मौजूद रहती जीने की सूरत कोई
आदमी का बस नहीं चलता कज़ा के सामने

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by मनोज अहसास on July 17, 2016 at 9:38pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी
सादर नमन
ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया से बहुत ख़ुशी हुई
सादर आभार
Comment by मनोज अहसास on July 17, 2016 at 9:36pm
आदरणीय मेहता जी
बहुत बहुत आभार।
सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 13, 2016 at 10:50am

सिर्फ वो ही ढक सकेगा अपनी खुद्दारी का सर
दौलतें प्यारी नहीं जिसको अना के सामने---बहुत उम्दा शेर 

सुन्दर ग़ज़ल के लिए दाद हाजिर है 

आद० समर भाई जी का सुझाव स्वागत योग्य है 

Comment by जयनित कुमार मेहता on July 12, 2016 at 2:59pm
आदरणीय मनोज जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुत की है आपने। हार्दिक बधाई।
Comment by मनोज अहसास on July 12, 2016 at 2:04pm
आदरणीय गिरिराज सर
शुरू में ये मतला इस सोच के साथ कहा गया था कि बच्चे की गलती पर जब माँ मुस्कुरा देती है तो माँ की इस अदा के सामने सारी दुनिया की अदा छोटी है
मुस्कुराहट ही सदा मिलती खता के सामने
सारी दुनिया छोटी है माँ की(इस) अदा के सामने

अब चूँकि ये बात मुझे भी स्वीकार हो गई है कि अदा शब्द माँ के साथ नहीं लगना चाहिए
तो आदरणीय कबीर साहब द्वारा सुझाया गया शब्द दुआ इस्तेमाल कर लेता हूँ
पर किसी तरह वो भाव भी बचा रहे इसके लिए आप सभी से निवेदन है कुछ इस्लाह देने की कृपा करें
सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 12, 2016 at 10:25am

आदरणीय मनोज भाई , अच्छी गज़ल कही है , दिल से बधाइयाँ आपको । आ. समर भाई जी ने सही सलाह दी है , मुझे नही लगता की विचार की कोई ज़रूरत है , फिर भी आप स्वतंत्र हैं ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 11, 2016 at 11:23pm
भाई मनोजजी दिल को छू गयी क्या कमाल की सोच ढेर सारी बधाई स्वीकार करें
Comment by मनोज अहसास on July 11, 2016 at 4:04pm
आभार पंकज भाई
सादर
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 11, 2016 at 3:06pm
बहुत खूब मनोज भाई, माँ के साथ दुआ ही सही होगा।
Comment by Ashok Kumar Raktale on July 11, 2016 at 2:06pm

वाह ! बहुत सुंदर अशआर निकालें हैं आदरणीय मनोज कुमार एहसास जी बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें इस खूबसूरत गजल के लिए. सादर.

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