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ग़ज़ल मनोज अहसास(इस्लाह के लिए)

221 2121 1221 212

हिम्मत को तोड़ देगा दुःखो का बखान भी
गर रास्ता है बंद,दबा ले जबान भी

हाथों से खोदकर ज़मीं पानी तलाश कर
दुश्मन जो तेरा हो गया हो आसमान भी

मैं दर ब दर हुआ था तेरी रुखसती के बाद
आहों में मेरी जल गया तेरा जहान भी

अपनी ही शक्ल देखी जो मुल्जिम बनी हुई
मेरे खिलाफ हो गया मेरा बयान भी
(मुझसे बयां न हो सका मेरा बयान भी)

झगड़ो पे मिली जिनसे नसीहत हमें सदा
अपनी वजह से चलती है उनकी दुकान भी

बेचारगी के शौक ने शाइर बना दिया
अम्बर पे बैठा सकता था ग़म का उफान भी

चोरी से अच्छी भीख है बस इतना सोचकर
मज़बूत ज़िस्म वाले को दे दीजिये दान भी

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by मनोज अहसास on July 18, 2016 at 9:54pm
आदरणीय शुक्ला जी
आदरणीय रक्ताले जी
आदरनीय गिरिराज सर

बहुत बहुत आभार
सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 18, 2016 at 8:57pm

आदरणीय मनोज भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , मुबारकबाद स्वीकार करें ।

मतले में ऐबे तनाफुर है --  बंद,दबा  , देख लीजियेगा , और  अंतिम शे र का सानी , बेबह्र लगरहा है , तक्तीअ कर के देख लीजियेगा ।

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 18, 2016 at 6:41pm

वाह ! खुबसूरत अशआर हुए हैं. आदरणीय समर साहब कि इस्लाह से और भी निखार आयेगा. सादर.

Comment by Ravi Shukla on July 18, 2016 at 11:06am

आदरणीय मनोज जी बढि़या गजल कही है आपने आदरणीय समर साहब की इसलाह से और भी निखर गये मिसरे दाद हाजिर है ।

Comment by मनोज अहसास on July 17, 2016 at 3:30am
बहुत बहुत आभार आदरणीय समर कबीर साहब
सभी सुझाव बहुत बढ़िया है बिलकुल सुधर लिया जायेगा
सादर आभार
Comment by Samar kabeer on July 16, 2016 at 10:12pm
जनाब मनोज कुमार 'अहसास'साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
कुछ सुझाव हैं अगर आपको पसन्द आजायें,
चौथे शैर का सानी मिसरा :-
"अपने ख़िलाफ़ हो गया मेरा बयान भी"
मतले में ऐब-ए-तनाफुर का दोष देखें
"झगड़ों पे जिनसे हमको नसीहत मिली सदा"
आख़री शैर के सानी मिसरे में 'देदीजिये'को "दे दीजे" कर लें ।

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