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कहाँ तक ज़िन्दगी से भागियेगा (ग़ज़ल)

1222 1222 122

हर इक चेहरे पे था चेहरों का पर्दा
तभी तो खा गया आईना धोखा

तुम्हारी मौत मेरी ज़िन्दगी है,
अँधेरा रौशनी से कह रहा था

नहीं छोड़ेगी पीछा मरते दम तक,
कहाँ तक ज़िन्दगी से भागियेगा।

निहत्था आफ़ताब आया फ़लक पर,
अभी हमला भी होगा बादलों का।

वफ़ा की बात फिर करने लगा मैं,
रिएक्शन ये दवा का हो गया क्या?

"जय" अब तो छोड़ करना सौदा-ए-दिल
हुआ कंगाल तू सह-सह के घाटा

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by जयनित कुमार मेहता on July 2, 2016 at 10:01pm
आदरणीया राजेश जी, मैं आपकी इस बात से सहमत नहीं हूँ कि हर्फ़-ए-उला का आख़िरी अक्षर यदि किसी स्वर योग के कारण दीर्घ मात्रिक रहता है तो इजाफत के बाद "ए" स्वर योजित होने पर उस आख़िरी अक्षर की मात्रा पर कोई प्रभाव नहीं पडता। हम चाहें तो आखिरी अक्षर की मात्रा गिराकर 'ए' को दीर्घ कर सकते हैं।

इस सन्दर्भ में आ. एहतराम इस्लाम जी का एक शे'र देखिये-

था किसी का भी न मक़सद सच को झुठलाना, मगर
मुँह में रखकर लुक्मा-ए-तर,सच को सच कहता तो कौन?

अब आप उपर्युक्त शे'र की तक़्तीअ करके निर्णय करें कि मकते का पहला मिसरा अरूज़ के नियमों के अंतर्गत है या नहीं?
सादर!!
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 2, 2016 at 8:53pm

आ० जयनित  भाई, बड़ी अच्छी जानकारी मिली . आ ० राजेश  दीदी ने  तो नियम ही बता दिया . मेरी समझ में  हमें ऐसी स्थितियों से बचना चहिये और अन्य  विकल्प ढूँढने चाहिए . आपकी गजल् कई मायने में बहुत अच्छी है .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 2, 2016 at 7:57pm

क्यूंकि मुझे भी समझना  था ये अतः एक पुस्तक ने हेल्प कर दी आप भी  देखिये 

५) हर्फ़-ए-उला का आख़िरी अक्षर यदि किसी स्वर योग के कारण दीर्घ मात्रिक रहता है तो इजाफत के बाद "ए" स्वर योजित होने पर उस आख़िरी अक्षर  की मात्रा पर कोई प्रभाव नहीं पडता वह पूर्ववत दीर्घ रहता है और 'ए' को अलग से लिख कर लघु मात्रा गिना जाता है 
उदाहरण - 'दीवार का साया' इज़ाफत द्वारा 'सायाए दीवार' हो जाता है इसमें साया २२ पर कोई फर्क नहीं पड़ता वह पूर्ववत २२ रहता है और 'ए' की लघु मात्रा को अलग से गिनते है  अतः सायाए दीवार का वज्न हुआ - २२१ २२१  

इसका एक और उदाहरण "शिकवा-ए-गम" है जिसका वज्न २२१ २ है    

इस हिसाब से आपके सौदा -ए -दिल का वज्न --२२ १२  होता है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 2, 2016 at 6:13pm

१२२ मैं सौदा ए दिल  कैसे कर सकते हैं मैं भी असमंजस में हूँ आद० गिरिराज जी से सहमत हूँ बाकि अरुज के अच्छे ज्ञानी  ही इस का ज्ञान हमें भी देंगे ..इन्तजार है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 2, 2016 at 1:31pm

आदरणीय जयनित भाई , मै ये नही कहता कि इस गाने मे गलत है , लेकिन ये ज़रूर कहूँगा कि फिल्मी गानों के आधार पर अरूज के नियमों को तय करने की कोशिश सही नही है । गानों मे बहुत सी गलतियों को स्वीकार कर लिया जाता है , और अगर धुन अच्छी हो तो चल भी जाते हैं

अगर आपके पास '' गज़ल की बाबत '' हो तो पेज न. 160 देखें । फिर भी ये सही लगे तो ठीक है ! समझने मे मुझसे भी भूल हो सकती है , मै भी तो आखिर सीख ही रहा हूँ , कोई उस्ताद तो हूँ नहीं । मै ही सुधार लूँगा अपनी जानकारी ।

Comment by जयनित कुमार मेहता on July 2, 2016 at 1:07pm
जी, मुझे तो इतना ही मालूम है कि अंत में दीर्घ होने पर इजाफत का नियम यही होता है।

एक उदाहरण देना चाहता हूँ।
एक ग़ज़ल (गीत) है-

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है

देखिये, इसमें भी बाज़ू-ए-क़ातिल को "बाज़ुए क़ातिल" 212 22 की तरह निभाया गया है।
आशा करता हूँ, इस बारे में अब आपकी अवधारणा स्पष्ट हुई होगी।
आदर सहित!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 2, 2016 at 12:59pm

आदरणीय मैने खयाल् ज़ाहिर किया है , इसका मतब ही है कि मै खुद कंफर्म नही हूँ --

देखिए -- हर्फे उला -- सौ दा -- 2  2

हर्फे इज़ाफत  --          ए   -      1

 हर्फे सानी --                दिल     2     --   आपने    दा ए दिल -  212   को 122 लिया है  यानी  दा को गिराया है और  ए को उठाया है -- अगर आपको मालूम है कि ये सही है तो , मुझे भी मंज़ूर है , मै स्वयँ इस बात से अनजान हूँ । मेरे लिये भी एक नई जानकारी होगी ।

Comment by जयनित कुमार मेहता on July 2, 2016 at 12:24pm
आदरणीय गिरिराज जी,
आपकी बात मैं जितनी समझ पा रहा हूँ, उसके अनुसार बात को स्पष्ट करने की कोशिश कर रहा हूँ।
इजाफत में अगर पहले शब्द के अंत में दीर्घ हो, तो आपके पास दो विकल्प होते हैं।
पहला या तो आप उसे दीर्घ ही मान लें, या उसकी मात्रा गिराकर लघु बना लें।

इस नियम के अनुसार मेरा मिसरा बह्र में है, देखिये-
जय अब (ज यब) तो छोड़ करना सौदा-ए-दिल (सौदए दिल)..

सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 2, 2016 at 7:46am

आदरनीय सौरभ भाई . आ. जयनित भाई , क्षमा चाहूँगा , मै ने अपनी प्रतिक्रिया में मक्ते तो मतला किख दिया था , वैसे आगे की बत सही है जो मै लिखना चाहता था कि - इजाफत मे - ए - की मात्रा 1 लिया जाता है , ऐसा मेरा खयाल है , क्या  इजाफत को 2 भी किया जा सकता  मात्रा उठा के , मै नही जानता । अभी मिसरा भी नीचे लिख रहा हूँ --
"जय" अब तो छोड़ करना सौदा-ए-दिल     --      मात्रा उठा के इजाफत को दो कर लेने में मुझे शंका है , जानकारों की सलाह का इंतिज़ार किया जा सकता है , बदलाव से पहिले ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 2, 2016 at 12:23am

निहत्था आफ़ताब आया फ़लक पर,
अभी हमला भी होगा बादलों का।

वाह वाह ! 

आदरणीय गिरिराज भाई, आदरणीया राजेश कुमारीजी, आईना का ना कई मामले में गिरता हुआ हमने देखा है. दूसरे, मतले का उला ठीक ही है.  मैं उस मिसरे को ऐसे पढ़ गया - हरिक चहरे पे था चहरों का पर्दा ..

सही विन्दु यदि अन्यथा है तो अवश्य साझा कीजियेगा. 

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