For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

परिवार / लघुकथा

 " अरे साहब , क्या हो गया है तुमको , ऐसे जमीन पर ..... ! "

" कौन विमला ? इतने दिन कैसे छुट्टी कर ली तुमने .....आह ! मुझ बुढ़े का तो ख्याल करती "

" उठो ,चलो बिस्तर पर , ज्यादा बोलने का नही रे ! .... मेरा घर-संसार है । यहाँ काम करने से ज्यादा जरूरी है वो । "

" हाँ ,सही कहा , तुम्हारा अपना घर !"

" साहब ,एक बात कहूँ , अब तुम अकेले नहीं रह सकते हो , तुम्हारी बेटी को बुला लो "

" क्या कहा तुमने ,बेटी को बुला लूँ ? "

" हाँ , यही बोला मै तेरे को , तू आज है कल नहीं है । ऐसे में किसी को पास होना माँगता ना ! देखो तो ,कैसे जमीन पर लुढ़का हुआ था "

" इकलौती बेटी मेरी ,जिसको पढ़ा - लिखा ,अफसर बना कर बुढ़ापे का सहारा बनाना चाहा , वो भी तो अब तुम्हारे जैसा ही कहती है विमला "

" मेरे जैसा कहती है , क्या कहती है वो ? "

" कहती है , वो अपने घर को छोड़ कर मुझे नहीं देख सकती है । उसकी पहली प्राथमिकता उसका अपना परिवार है "

" क्या रे साहिब , माँ - बाप ,जिसने जन्म दिया वो बेटी का परिवार नहीं ? "

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 1124

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by munish tanha on June 30, 2016 at 8:41am

तुम्हारी बेटी की जगह अपनी बेटी को बुला लो बेहतर होता बाकि कहानी मुझे अच्छी लगी  आजके दौर को प्रभाषित करती 

Comment by Nita Kasar on June 28, 2016 at 12:39pm
कथा आपकी उन बेटियों पर कारारा व्यंग्य है,जो माता पिता के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी नही निभाती उन्है भगवान भरोसे छोड देती है,काश उन्है अपनी परवरिश के दिन याद रहते,उन्है बस लेना ही आता है, बधाई आपके लिये ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 28, 2016 at 11:58am

बहुत  अच्छी लघु कथा हुई आ० कांता जी  बहुत मर्म  स्पर्शी  हार्दिक बधाई आपको | 

Comment by Ravi Prabhakar on June 28, 2016 at 10:01am

आदरणीय कांता रॉय जी,

/कौन विमला ? / यहां पर 'कौन' और 'विमला?' के बीच में Pause होना चाहिए था । वैसे तो आपने इस लघुकथा में डॉटस का प्रयोग बहुत खुलदिली से किया है परन्‍तु /कौन.... विमला?/ यहां डॉटस आवश्‍यक थे तो यहां आप चूक गई ।

/.... मेरा घर-संसार है । यहाँ काम करने से ज्यादा जरूरी है वो । "/  घरों में काम करने वाली बाई का यह संवाद गले से नीचे नहीं उतर रहा आदरणीय । बेशर उसका घर-संसार है पर दूसरों के घर काम काज करने से ही उसकी जीविक चलती है।

/" हाँ , यही बोला मै तेरे को "  /  जिस क्षेत्र विशेष की भाषा का उच्‍चारण विमला कर रही है वहां वहां शब्‍द 'को' नहीं 'कू' होना चाहिए। कुछेक और शब्‍द भी हैं जिनका उच्‍चारण विमला से दूसरी तरह करवाना उचित होता।

/" क्या रे साहिब , माँ - बाप ,जिसने जन्म दिया वो बेटी का परिवार नहीं ? "/  रूढ़वादी परंपरा पर एक जर्बदस्‍त चोट करती इस कथा हेतु बधाई स्‍वीकार करें । सादर

Comment by Sushil Sarna on June 27, 2016 at 8:37pm

" कहती है , वो अपने घर को छोड़ कर मुझे नहीं देख सकती है । उसकी पहली प्राथमिकता उसका अपना परिवार है "
" क्या रे साहिब , माँ - बाप ,जिसने जन्म दिया वो बेटी का परिवार नहीं ? "

बहुत मार्मिक, हृदयस्पर्शी और यथार्थ के धरातल को छूती इस लघुकथा की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया कांता रॉय जी। बेटी का जीवन दो पलड़ों में बटा होता है , अपने परिवार के उत्तरदायित्वों का निर्वाहन भी करना होता है और अपने जन्मदाता के प्रति अपने कर्तव्यों को भी निभाना होता है। बहरहाल इस प्रस्तुति के लिए आपको दिल से बधाई।

Comment by pratibha pande on June 27, 2016 at 2:14pm

  बस हमारे  समाज का ये ही  विरोधाभास सालता है , बेटे बेटी को जहाँ माँ बाप बराबरी से पालते हैं  संपत्ति में बराबरी का हिस्सा है तो माँ बाप के प्रति जिम्मेदारी बराबर क्यों नहीं , क्यों नहीं बेटियाँ ये महसूस करती हैं और इसके लिए खड़ी  होती हैं ,  हमारे समाज में व्याप्त इस विरोधाभास को आपने सशक्त शब्द  दिए हैं    हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको कांता जी 

Comment by Harash Mahajan on June 27, 2016 at 2:13pm

ह्रदय स्पर्शी ..मार्मिक ..मेरी जानिब से बहुत बहुत बधाई !! आ० कांता रॉय जी !!

सादर !!

Comment by Rahila on June 27, 2016 at 1:20pm
सच तो यह हैकि हमारा समाज भी कहीं ना कही इस सोच की पैरवी करता है।फिर बेटियां कितनी ही पढ़ी लिखी अफसर क्यों ना हो,पति और ससुराल वालों की इच्छा का मान रखना पड़ता है।बहुत अच्छा प्रश्न उठाया है आदरणीय कांता दीदी!खूब बधाई ।सादर
Comment by Mahendra Kumar on June 27, 2016 at 11:08am
बहुत ही अच्छी और सार्थक कहानी.. बहुत-बहुत बधाई.. सादर!
Comment by Shyam Narain Verma on June 27, 2016 at 10:54am

बेटी जब अपने संसार में रम जाती है तो फिर माता पिता से मिलने बहुत कम ही आती है फिर वो अकेली माता या पिता का दर्द कहा देख पाती है | बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती  आदरणीया , हार्दिक बधाई | सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
12 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 175 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है |इस बार का…See More
13 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Tuesday
नाथ सोनांचली commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"आद0 सुरेश कल्याण जी सादर अभिवादन। बढ़िया भावभियक्ति हुई है। वाकई में समय बदल रहा है, लेकिन बदलना तो…"
Tuesday
नाथ सोनांचली commented on आशीष यादव's blog post जाने तुमको क्या क्या कहता
"आद0 आशीष यादव जी सादर अभिवादन। बढ़िया श्रृंगार की रचना हुई है"
Tuesday
नाथ सोनांचली commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post मकर संक्रांति
"बढ़िया है"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

मकर संक्रांति

मकर संक्रांति -----------------प्रकृति में परिवर्तन की शुरुआतसूरज का दक्षिण से उत्तरायण गमनहोता…See More
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

नए साल में - गजल -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

पूछ सुख का पता फिर नए साल में एक निर्धन  चला  फिर नए साल में।१। * फिर वही रोग  संकट  वही दुश्मनी…See More
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"बहुत बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। दोहों पर मनोहारी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service