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कुत्ता [लघु कथा ]

सुबह सुबह सिंह साहब का ड्राईवर कल्याण ,शर्मा  जी के घर आया I

“सर, आप नगरपालिका में हैं ना , जानवर उठाने वाली गाड़ी के लिए फोन कर दीजिये मेहरबानी करके” I

“क्या हुआ “?

“वो सीज़र”  कल्याण का गला भर आया  “आज सुबह चल बसा “I

सीज़र सिंह साहब का एल्सेशियन कुत्ता था I सिंह साहब रोज़ उसे घुमाने ले जाते थे और उसी दौरान शर्मा जी की उनसे थोड़ी बहुत जान पहचान हो गई थी I आधे घंटे के प्रातः भ्रमण में , सिंह साहब के पास  बातों का विषय, ज़्यादातर  सीज़र ही होता था I कभी कभी शर्मा जी को कोफ़्त भी होती थी, उनका कुत्ता प्रेम देखकर I सीज़र से वो अंग्रेजी में लाड दुलार से ऐसे बातें करते थे जैसे अपने बच्चे से कर रहे हों I

“ साहब कहाँ हैं तुम्हारे? घूमते हुए दिखते  भी नहीं हैं आज कल “I

“वो तो चले गए ना दिल्ली ,यहाँ की नौकरी छोड़कर I  वहां बहुत बड़ी नौकरी मिल गई है “I

“सीज़र को तुम्हारे पास छोड़ गए “? आश्चर्य हो रहा था शर्मा जी को I

“ ये छोटा शहर है न सर I कम्पनी ने बंगला नौकर  गाड़ी सब दिए थे I  जानवर आसानी से पल गया  Iबड़े शहर में पैसा ज्यादा है, पर ये सब आराम कहाँ  “I

“सीज़र बीमार था क्या”? शर्मा जी ने धीरे से कल्याण के कंधे पर हाथ रख दिया I वो भी कहीं अन्दर भीगा हुआ महसूस कर रहे थे I

“साहब जब से गए , इसने खाना पीना छोड़ दिया था “ कल्याण सुबकने लगा था   “साहब तो वहां जाकर रम गए ,पर ये नहीं  भूल पाया उन्हें... कुत्ता था  ना” I  

मौलिक व् अप्रकाशित      

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Comment by pratibha pande on June 3, 2016 at 10:18pm

  आपने कथा के मर्म को समझा आपका हार्दिक आभार आदरणीया नीता जी 

Comment by pratibha pande on June 3, 2016 at 10:17pm

  आपने कथा के मर्म को समझा आपका हार्दिक आभार आदरणीया नीता जी 

Comment by pratibha pande on June 3, 2016 at 10:16pm

उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय राजेन्द्र  कुमार जी 

Comment by pratibha pande on June 3, 2016 at 10:14pm

अपने आस पास  मै देखती हूँ कि लोग अपने पालतू  कुत्तों को  तबादला होने या और कोई दूसरी असहूलियत के चलते  छोड़ देते हैं , हमने अंग्रेजों से कुत्ता पालना  एक स्टेटस सिंबल  की तरह सीख तो लिया है पर पालतू जानवरों के प्रति उनके जैसी संवेदनशीलता नहीं सीख पाए ,  आपने कथा के मर्म को समझा ,आपका हार्दिक आभार आदरणीय डॉ विजय शंकर जी ...सादर   

Comment by pratibha pande on June 3, 2016 at 10:03pm

 इस प्रयास पर उपस्थित होकर उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर जी   सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 3, 2016 at 8:46pm

बहुत ही संवेदनशील प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया प्रतिभाजी. 

पंच लाइन में नहिं का औचित्य समझ में नहीं आया. 

सादर

Comment by Nita Kasar on June 3, 2016 at 8:37pm
कुत्ते की वफ़ादारी का ये आलम है कि वह मालिक को भूल नही सकता,पर हम इंसान जरूर स्वार्थी हो जाते है काश इनकी वफ़ादारी का महत्व समझा जाता।बधाई आपको आद०प्रतिभा पांडे जी ।
Comment by Rajendra kumar dubey on June 3, 2016 at 7:02pm
आदरणीय प्रतिभा जी दिल को छू लेने वाली लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई।
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 3, 2016 at 5:26pm
" ये नहिं भूल पाया उन्हें... कुत्ता था ना " बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति , जानवरों के आदमियों से प्रेम भी विलक्षण होते हैं,
बहुत बहुत बधाई , आदरणीय सुश्री प्रतिभा पांडेय जी , सादर।
Comment by Samar kabeer on June 3, 2016 at 5:02pm
मोहतरमा प्रतिभा पांडे जी आदाब,लघुकथा अच्छी बनी है,पर कसावट चाहती है, इस प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

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