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अपनी अपनी भूख (लघुकथा)

पिछले कई दिनों से घर में एक अजीब सी हलचल थीI कभी नन्हे दीपू को डॉक्टर के पास ले जाया जाता तो कभी डॉक्टर उसे देखने घर आ जाताI दीपू स्कूल भी नहीं जा रहा थाI घर के सभी सदस्यों के चेहरों से ख़ुशी अचानक गायब हो गई थीI घर की नौकरानी इस सब को चुपचाप देखती रहतीI कई बार उसने पूछना भी चाहा  किन्तु दबंग स्वाभाव मालकिन से बात करने की हिम्मत ही नहीं हुईI आज जब फिर दीपू को डॉक्टर के पास ले वापिस घर लाया गया तो मालकिन की आँखों में आँसू थेI रसोई घर के सामने से गुज़र रही मालकिन से नौकरानी ने हिम्मत जुटा कर पूछ ही लिया:
"बीबी जी! क्या हुआ है छोटे बाबू को ?"
"देखती नहीं कितने दिनों से तबीयत ठीक नहीं है उसकी?" मालकिन ने बेहद रूखे स्वर में कहा I
"मगर हुआ क्या है उसको जो ठीक होने का नाम ही नहीं ले रहा?" 
"बहुत भयंकर रोग है!" एक गहरी सांस लेते हुए मालिकन ने कहा I
"हाय राम! कैसा भयंकर रोग बीबी जी?" नौकरानी पूछे बिना रह न सकी I 
मालकिन ने अपने कमरे की तरफ मुड़ते हुए एक गहरी साँस लेते हुए उत्तर दिया:
"उसको भूख नहीं लगती रीI"  
मालकिन के जाते ही अपनी फटी हुई धोती से हाथ पोंछती हुई नौकरानी बुदबुदाई:               
"मेरे बच्चों के सिर पर भी अपने बेटे का हाथ फिरवा दो बीबी जी I"
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(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by Samar kabeer on June 1, 2016 at 6:32pm
जनाब योगराज प्रभाकर साहिब आदाब,बहुत कुछ सिखा गई आपकी लघुकथा,क्या तारीफ़ करूँ,शब्द नहीं हैं मेरे पास,ढेरों बधाइयाँ स्वीकार करें इस शानदार प्रस्तुति पर।
Comment by Seema Singh on June 1, 2016 at 5:18pm
वाह सर शुक्रिया आपने मेरी खोज को मक़ाम दिया। मैं भूख विषय पर लघुकथा तलाश रही थी और आपने मेरी मुश्किल दूर कर। गज़ब की कथा है सर भूख के मायने हर इंसान के लिए अलग हो जाते हैं। परस्थितियों के अनुसार बदल भी जाते है किन्तु अगर कुछ ऐसा है जो नही बदलता.... वो है माँ की अपनी संतान के लिए पीड़ा।
Comment by Nita Kasar on June 1, 2016 at 3:06pm
मालकिन के लिये बच्चे को भूख ना लगना लाइलाज बीमारी है पर वह माँ क्या करें जो अपने बच्चों के लिये भोजन का प्रबंध करने में समर्थ ना हो।माँ के मन की पीड़ा भरे है ये शब्द मेरे बच्चों के सिर पर भी अपने बेटे का है फिरवा दो बीबी जी।बिल्कुल ततैया का डंक है ये अंतिम पंक्ति,आपका लेखन हमें अच्छा और अच्छा लिखने की प्रेरणा देता है ।बधाई आपके लिये आद०भाई जी ।
Comment by Sushil Sarna on June 1, 2016 at 2:25pm

"मेरे बच्चों के सिर पर भी अपने बेटे का हाथ फिरवा दो बीबी जी I"

वाह बहुत सुंदर आदरणीय इस पंच लाइन ने लघु कथा को शानदार अंत से अलंकृत किया है। इस पासा पलट पंच लाइन के लिए विशेष रूप से हार्दिक बधाई स्वीकार करें सर।

Comment by Madanlal Shrimali on June 1, 2016 at 2:19pm
हमेशा की तरह बढ़िया संप्रेषण और बढ़िया निरंतरता।कहानी जैसे जैसे आगे बढ़ती है लगता है बच्चे को कोई ना ईलाज रोग है।

//"बहुत भयंकर रोग है!" एक गहरी सांस लेते हुए मालिकन ने कहा।// ईस संवाद में अतिशयोक्ति/नाटकीयता मुझे ज्यादा लगती है।भूख नही लगने को कोई भयंकर रोग कैसे कह सकता है !

पंच लाइन बहुत ही अच्छी और दिल को छु लेने वाली है। हार्दिक बधाई हो आ.योगराज प्रभाकरजी।
Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on June 1, 2016 at 2:16pm

आदरणीय  सर, आपकी हर रचनाओं की तरह इस रचना के बारे में भी कुछ कहना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है, इस रचना द्वारा बहुत कुछ सीखने को मिला, नमन आपको सर|

Comment by kanta roy on June 1, 2016 at 1:29pm
बहुत बढ़िया लघुकथा है यह हमेशा की तरह । आपकी कथाओं से हमें सीखने को मिलती है कि लघुकथा लेखन कैसा हो ।साधारण सी बात को असाधारण रूप में कहने में जो गजब का शिल्प देखने को मिला है उस पर हमको चकित नहींं होना है क्योंकि यही तो आपका अंदाज़ है । अभिनंदन !

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