For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मंद चलती पवन , शांत रहती अगन,
भोर सा उल्लास प्रभु आठों याम चाहिए,
तप्त धरती गगन , और जलता बदन,
ग्रीष्म प्रभू और नहीं ना ही घाम चाहिए,
आयें घन लिए नीर हरें व्याकुलों कि पीर,
एक वरदान भगवान राम चाहिए,
एक बनें नेक बनें, हिलमिल सब रहें,
वसुधा पे ऐसा प्रभु सुखधाम चाहिए ||


मौलिक/अप्रकाशित.

Views: 704

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on June 5, 2016 at 3:10pm

आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी !  घनाक्षरी के पद  समकल से  प्रारंभ करने का आपका सुझाव उत्तम है. त्रिकल के पश्चात त्रिकल रखकर रचने से मैं समकल वाली चूक को पकड़ नहीं पाया. अवश्य ही मैं इस बात का ध्यान रखूंगा. कथ्य में मेरा प्रयास सूखा पीड़ितों को भी समेटना था, किन्तु आपकी प्रतिक्रिया से सहज समझ आ रहा है उसमें भी सफलता नहीं मिली है.इस पर भी अवश्य ही ध्यान दूंगा. सादर आभार.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 1, 2016 at 10:51am

घनाक्षरी विधा पर आपकी कोई रचना अरसे बाद आयी है, आदरणीय अशोक जी। इस निमित्त आपको हार्दिक शुभकामनाएँ व बधाइयाँ। 

परन्तु, आपने जिस ढंग से पंक्तियों का विन्यास रखा है, वह नियमों की महीनी के अनरूप नहीं है। यह अपने आप में कोई गलती नहीं है। लेकिन सर्वमान्यता यही है कि घनाक्षरी के पद समकलों से प्रारम्भ हुए तो वाचन प्रवाह सहज ही नहीं पारम्परिक भी होता है। आपका प्रथम दो पंक्तियों का प्रारम्भ त्रिकल से होने से उन शब्दों के उच्चारण के साथ ही या तो प्रवाह रुक जाता है, या उन शब्दों के लघु वर्ण पर बलाघात कम से कम कर आगे के शब्द के समकल की मौज़ूदग़ी का लाभ लेना पड़ता है। पुनः, यह कोई बहुत बड़ी गलती नहीं है लेकिन घनाक्षरी विधा के सही स्वर को जानने वालों के लिए वाचन ढंग को बदलना पड़ता है। आप प्रति पंक्ति का प्रारम्भ समकलों से करें। देखिये, वाचन प्रवाह में गुणात्मक सुधार होगा। 

दूसरी बात, घनाक्षरी छन्द शास्त्र में घोषित मुक्तक हैं। अतः, एक मुक्तक में विषय एक ही रहे तो वह अधिक विधाजन्य माना जाता है। ध्यातव्य है, प्रस्तुत रचना ग्रीष्म की चर्चा से शुरु हो कर जन-जनार्दन की नैतिक ऊँचाई की कामना करनेलगतती है। वर्णन के क्रम मे ऐसी छलांग उचित नहीं है। विश्वास है, आप मेरे कहे का मूल समझ रहे हैं।

बहरहाल छन्द पर हुआ आपका प्रयास निस्संदेह आश्वस्तिकारक है।

सादर

Comment by babita choubey shakti on June 1, 2016 at 9:28am
बहुत सुंदर छंद बधाई आ जी
Comment by Ashok Kumar Raktale on May 29, 2016 at 10:36pm

आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार, आपको छंद अच्छा  लगा मेरे रचनाकर्म को मान मिला. सादर आभार.

Comment by Samar kabeer on May 29, 2016 at 6:43pm
जनाब अशोक कुमार रक्ताले जी आदाब,बहुत सुंदर है आपकी रचना,इस प्रस्तुति पर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ।
Comment by Ashok Kumar Raktale on May 29, 2016 at 5:19pm

बहुत-बहुत आभार आदरणीय सुरेश कुमार जी.सादर.

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 28, 2016 at 11:43am
वाह वाह बहुत ही सुन्दर विनती आदरणीय बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
7 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service