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एक ग़ज़ल ओबीओ के नाम

फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन/फ़ेलान

ज पर तुझको देखना है मुझे
त्र में उसने ये लिखा है मुझे

स्ल-ए-नव से मदद का तालिब हूँ
बुर्ज नफ़रत का तोड़ना है मुझे

क्या कहूँ ,कब मिलेगा मीठा फल   
ब्र करना तो आ गया है मुझे

ज तेरे बग़ैर ये जीवन
र्क जैसा ही लग रहा है मुझे

लाख दुश्वारियाँ हों, जाऊँगा
श्क़ तेरा बुला रहा है मुझे

र्म गुफ़्तार से "समर" देखो
आज फिर ज़ैर कर लिया है मुझे

_________

ओज :- ऊँचाई
नस्ल-ए-नव :- नई नस्ल
बुर्ज :- गुम्बद
गुफ़्तार :- बोलचाल

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Samar kabeer on May 5, 2016 at 11:54am
जनाब शिज्जु "शकूर" जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on May 5, 2016 at 11:52am
जनाब दिनेश कुमार जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on May 5, 2016 at 11:51am
जनाब निलेश "नूर" जी आदाब,बहुत बहुत शुक्रिया आपका ।
Comment by Samar kabeer on May 5, 2016 at 11:50am
मोहतरमा कल्पना जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 5, 2016 at 7:14am
ग़ज़ल के साथ ग़ज़ल से मुख़्तलिफ़ आपकी फ़नकारी बेजोड़, बेमिसाल है मोहतरम जनाब समर कबीर साहब
Comment by दिनेश कुमार on May 4, 2016 at 8:00pm
कमाल है आदरणीय समर साहब। वाह..और क्या कहूँ..!!
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 4, 2016 at 6:10pm

आहा ..क्या कहने ...

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 4, 2016 at 1:58pm

बहुत सुंदर ग़ज़ल कही है जनाब समर साहब | बधाई कुबूल करें | 

Comment by Samar kabeer on May 3, 2016 at 11:29pm
जनाब सौरभ पांडे जी,मंच के इस पाक जज़्बे को सलाम करता हूँ ।
Comment by Samar kabeer on May 3, 2016 at 11:26pm
मोहतरमा नीता जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

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