मेरे महबूब सपनों से हक़ीक़त बन तू आ जाए
मेरा उजड़ा हुवॉ जीवन मेरी जाँ फिर सवर जाए
मुझे अहसास अब होने लगा है इश्क़ में तेरे
कहीं ना ज़िन्दगी तेरी ही गलियों में गुज़र जाए
जिसे हो जुस्तजू तेरी वो बेचारा किधर जाए
जिए वो ज़िंदगी अपनी या आहें भर के मर जाए
मैं अक्सर आह भरता हूँ तेरे दीदार के ख़ातिर
झलक तेरी मिले गर तो मेरा जीवन सँवर जाए
तेरी गलियों की मिट्टी भी मुझे जन्नत से प्यारी है
चले गर साथ हम दोनों मुहब्बत भी निखर जाए
निगाहें मुन्तज़िर मेरी है मुद्दत से तेरीे ख़ातिर
सहारा जाविदाँ मुझको मिले जीवन सुधर जाए
बड़ा नादान ये दिल है अभी इससे न रूठो तुम
चटक कर तेरे कूचे में न शीशे सा बिखर जाए
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गिरिराज जी आपके द्वरा दिया गया सुझाव का सम्मान करते हुवे ये बता दूँ कि मै अभी सीख ही रहा हूँ पर आपकी उचित सलाह को नमन करता हूँ
आदरणीया राजेश कुमारी जी आपके द्वारा दी गई सलाह को सर आँखों पर रखते हुवे आभार प्रगट करता हूँ
आ० अमित जी ,प्रयास रत रहिये बेहतर कर सकेंगे विद्वद जनों की राय काबिले गौर है
आदरणीय अमित भाई , गज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है , प्रयास जारी रखियेगा ! गज़ल की कक्षा के पाठ जरूर पढियेगा । आपको हार्दिक शुभकामनाये और बधाइयाँ ।
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