For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मार डालेगा तेरा गैर जबाबी होना (ग़ज़ल 'राज')

2122  1122   1122   22

शाम को झील के रुख़सार गुलाबी होना

 मिलके खुर्शीद से जज्बात रूहानी होना

 

उन्स की  मय से लबालब है ग़ज़ल का सागर

, डूबकर उसमे सुखनवर का शराबी होना 

 

बिन कहे छोड़ के जाना यूँ अकेले लिल्लाह

मार डालेगा तेरा गैर जबाबी होना

 

पाक उल्फत या मुहब्बत या इबादत समझो

कृष्ण की चाह में मीरा का दिवानी होना

 

वो मुहब्बत है कहाँ आज वो दिलदार कहाँ

चुन के दीवार में चुपचाप कहानी होना   

 

  नक्श उम्मीद-ए-कलम के ये सदा होते हैं 

  दिल के ज़ज्बात के सागर में सुनामी होना  

 

कब्र का हाल तो मुर्दा ही समझ सकता है

लोग आसान समझते हैं निजामी होना           

 

पुरखतर राह जवानी की बड़ी होती है

उस पे मासूम तेरा रू-ए-किताबी होना 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 1190

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 12, 2016 at 9:24am

आ० लक्ष्मण भैय्या  ,या तो आप टिप्पणी प्राची जी की ग़ज़ल पर कर रहे थे या मेरा नाम भूल गए ? एनी वे आभार आपका .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 5, 2016 at 11:19am

आ० प्राची बहन इस सुन्दर गज़क्ल के लिए हार्दिक बधाई l


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 3, 2016 at 9:44pm

आभार  भाई  जी ,कुछ सोचती हूँ .

Comment by Samar kabeer on March 3, 2016 at 9:20pm
जी,बहना इसे ख़ारिज न करें बल्कि सानी मिसरे पर उसके अर्थ को ध्यान में रखते हुए ऊला मिसरा बदल दीजिये,ये तो आपके बाएं हाथ का खेल है हा हा हा...

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 3, 2016 at 6:36pm

बृजेशकुमार जी ,आपका दिल से बहुत- बहुत आभार| 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 3, 2016 at 6:35pm

आ० सुशील सरना जी ,आपकी जर्रानवाजी का दिल से शुक्रिया मेरा लिखना सार्थक हुआ .

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 3, 2016 at 3:46pm

वाहह वाहह क्या ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है बहुतखूब..

Comment by Sushil Sarna on March 3, 2016 at 1:30pm

वो मुहब्बत है कहाँ आज वो दिलदार कहाँ
चुन के दीवार में चुपचाप कहानी होना

वाह आदरणीया वाह कितने गहन अहसास हैं इस ग़ज़ल में। ... बहुत खूब.... हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया राजेश कुमारी जी इस बेहतरीन प्रस्तुति पर।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 3, 2016 at 12:41pm

आ० नादिर खान जी ,आपको अशआर पसंद आये मेरा लेखन कर्म सफल हुआ |आप सही फरमाते हैं आ० समर भाई  जी से बहुत कुछ सीखने को मिलता है |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 3, 2016 at 12:40pm

आ० समर भाई जी आपके मार्गदर्शन की बेहद शुक्र्गुजार हूँ इस शेर को खारिज करके दूसरी तरह लिखूंगी. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service