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लघुकथा (लघुकथा) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"लघुकथा" साहित्यिक पत्रिका की वर्षगाँठ समारोह में नये व पुराने लेखकगण, एक दूसरे से रूबरू हुए। इस अवसर पर विशेष रूप से लगायी गई पेंटिंग को सभी ग़ौर से देख रहे थे।

"यह जो लकड़ी की रचना देख रहे हो न, यह दरवाज़ा रूपी एक उत्कृष्ट लघुकथा है, लघुकथा के फ्रेम में विधिवत संयोजित!"- पुराने ने एक नये लेखक को बताते हुए कहा।

"और ये खड़ी पट्टियां और पैबंद से...?"

"ये तीनों खड़ी पट्टियां क्रमशः लघुकथा का आरंभ, मध्य भाग और अंतिम भाग हैं... और वे आड़े से तीनों पैबंद नहीं हैं, वे तो कसावट के लिए प्रयुक्त शिल्प हैं !"

"फिर वो बाहर क्या है सफेद चमकता सा?"

"घरनुमा साहित्यिक जगत में बढ़िया फ्रेम में फिट होकर उत्कृष्ट लघुकथा खुलकर कथ्य को प्रकाशित, सम्प्रेषित कर रही है, उसी की रोशनी पाठकों तक पहुँच रही है!"

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 21, 2017 at 9:58pm

बढ़िया कथा आदरणीय शहजाद भाई | हार्दिक बधाई |

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 17, 2016 at 7:47pm
प्रथम प्रोत्साहक टिप्पणी करने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया राहिला जी।
Comment by Rahila on February 15, 2016 at 7:21pm
शानदार, वाह. ..कितनी खूबसूरती से उपमाओं को संजोकर आपने इतनी गूढ़ बात कह दी।बहुत बधाई आदरणीय उस्मानी जी।

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