For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बात आई गयी [लघु कथा ] प्रदीप कुमार पांडे

अपने बंगले के बगीचे की दीवार के पास जमा भीड़ देखकर उसने गाड़ी रोक दी I

" क्या हुआ "? बाहर निकल उसने पूछा I

"कोई भिखारी मर गया "I

" कैसे ?"

" कैसे क्या साहब ,ठण्ड से अकड़ कर I पिछले कुछ दिनों से  यहीं पड़ा रहता था दीवार के पास I"

गाड़ी  में  बैठते उसे लगा ,उसका सारा शरीर ठण्ड से जमा जा रहा है I चार दिन पहले पत्नी ने कहा था कि पुराने गर्म कपडे कम्बल  काफी जमा हो गए हैं , कहीं दान करने चलना है I और फिर बात आई गयी हो गयी थी I

" अरे, अब क्या चद्दर डाल रहे हो इसके ऊपर , चलो चलो  हटो i ले जाने दो " I शव वाहन वाले काम में लग गए थे I

 मौलिक व् अप्रकाशित 

Views: 556

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 5, 2016 at 10:40pm

आडम्बरों में जकड़ी यह दुनिया अपने ही भविष्य के प्रति कितनी लापरवाह होती है न ? एक सशक्त लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय प्रदीप जी.

शुभकामनाएँ

Comment by Pawan Jain on February 5, 2016 at 12:27pm

आदरणीय प्रदीप कुमार पांडे जी,बहुत बहुत बधाई,हम सोचते ही रह जाते हैं।

Comment by TEJ VEER SINGH on February 5, 2016 at 10:26am

हार्दिक बधाई आदरणीय राहिला जी!बेहतरीन प्रस्तुति!

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on February 4, 2016 at 5:30pm
सुंदर सन्देश।अब चद्दर का क्या?
बहुत बहुत बधाई आदरणीय प्रदीप जी।
Comment by नादिर ख़ान on February 4, 2016 at 11:28am

अरे, अब क्या चद्दर डाल रहे हो इसके ऊपर............

आदरणीय प्रदीप पाण्डेय जी सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई....

सही कहा आपने जो कुछ करना  है जीते जी ही करना है समय निकल जाने के बाद सब कुछ व्यर्थ है,फिर तो आत्मग्लानि के सिवाय  कुछ नहीं बचता ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 4, 2016 at 12:46am

आदरणीय प्रदीप जी, बहुत ही सार्थक लघुकथा लिखी है आपने. रचना का सन्देश बहुत तीव्रता से प्रभवित करता है इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. सादर 

Comment by Rahila on February 3, 2016 at 6:29pm
बहुत बधाई आदरणीय प्रदीप सर जी!वाकई लोगों का सोचने में ही समय निकल जाता है ।दिल को छू लेने वाली एक सार्थक लघुकथा के लिये पुनः बधाई । सादर प्रणाम ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service