For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उम्र का सफर ....

हम उम्र के साथी
शायद मेरी तरह
बूढ़े होने लगे हैं
केशों में चमकती चांदी
चेहरे की झुर्रियां
जीवन का सफर का
बेबाक आईना हैं

हाँ, सच
ये तो मेरी ही तरह बूढ़े हो चुके हैं
इनके हाथ काम्पने लगे हैं
मुंह की लार बस में नहीं है
ज़िंदगी को
बिना किसी सहारे के जीने वाले
बूढ़ी थकी लाठी पर
अपनी देह का बोझ लादे
डगमगाते पाँव लिए
जीवन का शेष सफर
तय करते नज़र आते हैं

क्या ! जीवन के सूरज का
अंजाम ऐसा ही होता है
क्या ! साँझ के आँचल में डूबता सूरज
इतना ही बूढा होता है
जितना मैं

ये बुढ़ापा है या सच्चाई का कहकहा
नेत्रों की मंद ज्योति को
न राह नज़र आती है न मंज़िल
देह अपनी ही साँसों की आवाज़ से
रूबरू होने लगती है
किसी चेहरे पे
अपनेपन का रंग नज़र नहीं आता
कभी मुझपे फक्र करने वाले
आज मिलने से भी कतराते हैं
मेरी हर बात को
हंसी में उड़ा जाते हैं
मेरी आँखों से बहती
अंतर्मन की घुटन को
बुढ़ापे के वज़ह से
आँख से बहता पानी समझ
मेरी व्यथा पर
मुस्कुराभर देते हैं

कोई मेरी बात को समझता नहीं
लोग मेरे बालों की सफेदी , आँखों की मंद रोशनी ,
कंपकपाते हाथों और पांवों की
दैहिक गलन को
बुढ़ापे का नाम देकर
संतुष्ट कर लेते हैं

उम्र के इस मोड़ पर
उनकी प्रतिक्रिया देखकर
मन ही मन मैं भी हंस लेता हूँ
कैसे समझाऊँ
मैं जो देह से अलग हूँ
बूढा नहीं हूँ
और जो बूढा है
वो मैं नहीं हूँ


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 471

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on February 3, 2016 at 1:04pm
आदरणीय laxman dhamiजी रचना में निहित भावों को मान देने का तहे दिल से शुक्रिया।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 3, 2016 at 12:14am

बहुत खूब l

Comment by Sushil Sarna on February 2, 2016 at 6:42pm

आदरणीय    vijay nikore जी रचना में निहित भावों को मान देने का तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on February 2, 2016 at 6:41pm

आदरणीय   Hari Prakash Dubey जी रचना में निहित भावों को मान देने का तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by vijay nikore on February 2, 2016 at 3:35pm

उम्र के सफ़र का अच्छा चित्रण दिया है। हार्दिक बधाई, आदरणीय सुशील जी।

Comment by Hari Prakash Dubey on February 2, 2016 at 1:45am

कैसे समझाऊँ

मैं जो देह से अलग हूँ

बूढा नहीं हूँ

और जो बूढा है

वो मैं नहीं हूँ.........बहुत सुन्दर ,हार्दिक बधाई आ. सुशील सरना जी ! सादर 

 

Comment by Sushil Sarna on January 31, 2016 at 7:28pm

आदरणीयू तेजवीर सिंह जी रचना में निहित भावों को मान देने का तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by TEJ VEER SINGH on January 31, 2016 at 11:15am

हार्दिक बधाई  आदरणीय सुशील सरना जी!बहुत ही शानदार प्रस्तुति!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विविध
"आदरणीय अशोक रक्ताले जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
22 minutes ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया से सोच को नव चेतना मिली । प्रयास रहेगा…"
25 minutes ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय बृजेश कुमार जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
32 minutes ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मैं आपके कथन का पूर्ण समर्थन करता हूँ आदरणीय तिलक कपूर जी। आपकी टिप्पणी इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो
"धन्यवाद आ. दयाराम मेठानी जी "
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. बृजेश कुमार जी.५ वें शेर पर स्पष्टीकरण नीचे टिप्पणी में देने का प्रयास किया है. आशा है…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आपकी विस्तृत टिप्पणी से ग़ज़ल कहने का उत्साह बढ़ जाता है.तेरे प्यार में पर आ. समर…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. गिरिराज जी "
1 hour ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on दिनेश कुमार's blog post ग़ज़ल दिनेश कुमार -- अंधेरा चार सू फैला दमे-सहर कैसा
"वाह-वह और वाह भाई दिनेश जी....बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है बधाई.... "
2 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"अद्भुत है आदरणीय नीलेश जी....और मतला ही मैंने कई बार पढ़ा। हरेक शेर बेमिसाल। आपका धन्यवाद इतनी…"
2 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"वाह-वाह आदरणीय भंडारी जी क्या ही शानदार ग़ज़ल कही है। और रदीफ़ ने तो दीवाना कर दिया।हार्दिक…"
2 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service