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ग़ज़ल :- कहाँ ये दिल बहले

मफ़ाइलुन फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन

कहाँ ये वक़्त गुज़ारूँ , कहाँ ये दिल बहले
वहाँ पे लेके चलो तुम, जहाँ ये दिल बहले

है ग़म गुसारि भी देखो बड़े सवाब का काम
सुनाओ ऐसी कोई दास्ताँ ये दिल बहले

इसी सबब से तो करते है इस पे मश्क़-ए-सितम
वो चाहते ही नहीं हैं मियाँ ये दिल बहले

ग़म-ए-हयात की तल्ख़ी सही नहीं जाती
करो कुछ ऐसा जतन मह्रबाँ ये दिल बहले

मिरे मिज़ाज ने मुझ को जकड़ रखा है 'समर'
वहाँ में जाता नहीं हूँ , जहाँ ये दिल बहले

______

ग़मगुसारी :- ग़म बाँटना
सवाब :- पुण्य
मश्क़ :- अभ्यास

नोट :- मतले में ईताए जली का दोष मजबूरी है ।

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 17, 2016 at 10:57pm

खूबसूरत अश’आर हुए हैं जनाब समर साहब, दाद कुबूल करें। लंबी रदीफ़ निभाने के लिए अलग से दाद

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 17, 2016 at 7:51pm

मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब , ..... बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल हुई है  मुबारक बाद क़ुबूल फरमाएं /.... दूसरे  शेर के ऊला मिसरे  में लगता है कोई कमी रह गयी है। ... शुक्रिया 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on January 17, 2016 at 7:24pm

अरे वाह.. क्या बात ..क्या खूब ग़ज़ल कही है ...

Comment by TEJ VEER SINGH on January 17, 2016 at 5:42pm

हार्दिक बधाई आदरणीय समर क़बीर साहब जी!बेहतरीन गज़ल!एक एक शेर लाज़वाब है!

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