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कुछ छन्नपकैया सारछन्द

छन्न पकैया छन्न पकैया, खाकर रोटी चटनी
अब तो हम छन्दों में यारो,कहते विपदा अपनी

छन्न पकैया छन्न पकैया,सोवत काहे भैया
तेरी इस निंदिया के कारण डूब न जाये नैया

छन्न पकैया छन्न पकैया ,जीवन बीता रोते
क्यूँकि अपने साथ साथ औरों का दुःख भी ढोते

छन्न पकैया छन्न पकैया ,मुझ पर छींटा कँसती
जब भी मैं सच कहता हूँ ये ज़ालिम दुनिया हँसती

छन्न पकैया छन्न पकैया,भटके दर दर जोगी
कि भिक्षा देता वही उसे जो होता मन का रोगी

छन्न पकैया छन्न पकैया सुन लो भाई रमेश
मन्दिर जाना है तो आओ धोकर मन का क्लेश

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 8, 2022 at 8:27pm

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। सार्थक सार छन्द हुए हैं हार्दिक बधाई।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 6, 2016 at 11:18am
उम्दा ज़नाब समर कबीर साहब
Comment by Samar kabeer on January 5, 2016 at 10:51pm
बहना राजेश कुमारी जी,आदाब,आपको मेरी कोशिश पसंद आई,इस के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ,इस सम्बन्ध में आपसे मार्गदर्शन सदैव अपेक्षित है ।
Comment by Samar kabeer on January 5, 2016 at 10:49pm
जनाब सौरभ पांडे जी,आदाब,आपके दिये हुए मार्गदर्शन को दिल-ओ-दिमाग़ में महफ़ूज़ कर लिया है और उस पर अमल पैरा भी हूँ ,आपने जिस अंदाज़ में मेरी कोशिश की पज़ीराइ की उस से मेरा हौसला बहुत बढ़ गया है ,अस्ल में दिक़्क़त मुझे यह हो रही है कि मैं हिन्दी शब्दों से कम आशना हूँ ,हिन्दी शब्दों का ज़ख़ीरा मेरे पास कम है ,इस सबब से वो रफ़्तार नहीं पकड़ पा रहा हूँ ,आपका मार्गदर्शन अगर इसी तरह मिलता रहा,और आप इसी तरह हौसला अफ़ज़ाई करते रहे तो क़वी उम्मीद है कि मैं इस दरिया को आसानी से पार कर लूँगा ,शुक्रिया शब्द न जाने क्यूँ मुझे इस वक़्त छोटा लग रहा है, मैं आपकी मुहब्बतों को सलाम पेश करता हूँ ,क़ुबूल फ़रमाऐं ।
Comment by Samar kabeer on January 5, 2016 at 10:36pm
जनाब श्याम नारायण वर्मा जी,आदाब,हौसला अफ़ज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 29, 2015 at 11:58pm

वाह वाह आ० समर भाई जी,आपको छंद लिखते देखना बड़ा सुखद लगता है  आपकी बेहतरीन कोशिश पर दिल से बधाई दे रही हूँ बाकी आ० सौरभ जी ने बता ही दिया |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 29, 2015 at 11:30pm

अव्वल तो आदरणीय समर कबीर साहब, दिल से बधाई लीजिये कि आपकी कोशिश सिर चढ़ कर बोल रही है. और हम बार-बार अभिभूत हुए जा रहे हैं. आपने जिस अंदाज़ में सार छन्द के छन्न पकैया प्रारूप को अपनाया है वह प्रेरक है. यह आपका पहला प्रयास है सो कुछ असंगतियाँ स्वाभाविक है लेकिन आप सहजता से इनसे पार पा लेंगे. 

कुछ बातें ध्यान देने योग्य है, वो ये कि कोई पंक्ति स्पष्ट चरणों में हो.

इस हिसाब से  क्यूँकि अपने साथ साथ औरों का दुःख भी ढोते  के चरण स्पष्ट नहीं हैं. अर्थात १६ वीं मात्रा शब्द के बीच में पड़ती है. यह कुछ-कुछ शिकस्ते नार’वा के ऐब जैसा है. 

दूसरे, किसी चरण (इस छन्द की एक पंक्ति में दो चरण होते हैं, १६-१२ की यति पर) का अन्त जगण या आभासी जगण (१२१) या फिर रगण या अभासी रगण (२१२)) से नहीं हो सकता. जैसाकि एकदो जगह हो गया है.  इस हिसाब से रमेश या क्लेश की तुकान्तता नहीं बन सकती. 

बाकी आपका प्रयास स्तुत्य है. हार्दिक बधाइयाँ व शुभकामनाएँ, आदरणीय

जभी निवाला 

Comment by Shyam Narain Verma on December 29, 2015 at 10:38am
बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई आप को आदरणीय | सादर 

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