For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुछ छन्नपकैया सारछन्द

छन्न पकैया छन्न पकैया, खाकर रोटी चटनी
अब तो हम छन्दों में यारो,कहते विपदा अपनी

छन्न पकैया छन्न पकैया,सोवत काहे भैया
तेरी इस निंदिया के कारण डूब न जाये नैया

छन्न पकैया छन्न पकैया ,जीवन बीता रोते
क्यूँकि अपने साथ साथ औरों का दुःख भी ढोते

छन्न पकैया छन्न पकैया ,मुझ पर छींटा कँसती
जब भी मैं सच कहता हूँ ये ज़ालिम दुनिया हँसती

छन्न पकैया छन्न पकैया,भटके दर दर जोगी
कि भिक्षा देता वही उसे जो होता मन का रोगी

छन्न पकैया छन्न पकैया सुन लो भाई रमेश
मन्दिर जाना है तो आओ धोकर मन का क्लेश

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 566

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 8, 2022 at 8:27pm

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। सार्थक सार छन्द हुए हैं हार्दिक बधाई।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 6, 2016 at 11:18am
उम्दा ज़नाब समर कबीर साहब
Comment by Samar kabeer on January 5, 2016 at 10:51pm
बहना राजेश कुमारी जी,आदाब,आपको मेरी कोशिश पसंद आई,इस के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ,इस सम्बन्ध में आपसे मार्गदर्शन सदैव अपेक्षित है ।
Comment by Samar kabeer on January 5, 2016 at 10:49pm
जनाब सौरभ पांडे जी,आदाब,आपके दिये हुए मार्गदर्शन को दिल-ओ-दिमाग़ में महफ़ूज़ कर लिया है और उस पर अमल पैरा भी हूँ ,आपने जिस अंदाज़ में मेरी कोशिश की पज़ीराइ की उस से मेरा हौसला बहुत बढ़ गया है ,अस्ल में दिक़्क़त मुझे यह हो रही है कि मैं हिन्दी शब्दों से कम आशना हूँ ,हिन्दी शब्दों का ज़ख़ीरा मेरे पास कम है ,इस सबब से वो रफ़्तार नहीं पकड़ पा रहा हूँ ,आपका मार्गदर्शन अगर इसी तरह मिलता रहा,और आप इसी तरह हौसला अफ़ज़ाई करते रहे तो क़वी उम्मीद है कि मैं इस दरिया को आसानी से पार कर लूँगा ,शुक्रिया शब्द न जाने क्यूँ मुझे इस वक़्त छोटा लग रहा है, मैं आपकी मुहब्बतों को सलाम पेश करता हूँ ,क़ुबूल फ़रमाऐं ।
Comment by Samar kabeer on January 5, 2016 at 10:36pm
जनाब श्याम नारायण वर्मा जी,आदाब,हौसला अफ़ज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 29, 2015 at 11:58pm

वाह वाह आ० समर भाई जी,आपको छंद लिखते देखना बड़ा सुखद लगता है  आपकी बेहतरीन कोशिश पर दिल से बधाई दे रही हूँ बाकी आ० सौरभ जी ने बता ही दिया |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 29, 2015 at 11:30pm

अव्वल तो आदरणीय समर कबीर साहब, दिल से बधाई लीजिये कि आपकी कोशिश सिर चढ़ कर बोल रही है. और हम बार-बार अभिभूत हुए जा रहे हैं. आपने जिस अंदाज़ में सार छन्द के छन्न पकैया प्रारूप को अपनाया है वह प्रेरक है. यह आपका पहला प्रयास है सो कुछ असंगतियाँ स्वाभाविक है लेकिन आप सहजता से इनसे पार पा लेंगे. 

कुछ बातें ध्यान देने योग्य है, वो ये कि कोई पंक्ति स्पष्ट चरणों में हो.

इस हिसाब से  क्यूँकि अपने साथ साथ औरों का दुःख भी ढोते  के चरण स्पष्ट नहीं हैं. अर्थात १६ वीं मात्रा शब्द के बीच में पड़ती है. यह कुछ-कुछ शिकस्ते नार’वा के ऐब जैसा है. 

दूसरे, किसी चरण (इस छन्द की एक पंक्ति में दो चरण होते हैं, १६-१२ की यति पर) का अन्त जगण या आभासी जगण (१२१) या फिर रगण या अभासी रगण (२१२)) से नहीं हो सकता. जैसाकि एकदो जगह हो गया है.  इस हिसाब से रमेश या क्लेश की तुकान्तता नहीं बन सकती. 

बाकी आपका प्रयास स्तुत्य है. हार्दिक बधाइयाँ व शुभकामनाएँ, आदरणीय

जभी निवाला 

Comment by Shyam Narain Verma on December 29, 2015 at 10:38am
बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई आप को आदरणीय | सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Friday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service