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गरीब जमने लगा उनको अब तपायेगी क्या? ग़ज़ल द्वारा पंकज मिश्र

1212 1122 1212 112
कि जिनके पास नहीं छत उन्हें सतायेगी क्या?
ये सर्द रात भला उनको अब सुलायेगी क्या?

बहुत अगन है सुना है श्मशान घाटों पर।
गरीब जमने लगा उनको अब तपायेगी क्या?

मिला था शाम में जो चीथड़े लपेटे हुए।
उसी को शीत लहर साथ में ले जायेगी क्या?

बहुत ही ऊँचा है रुतबा अगर तुम्हारा तो फिर?
तुम्हारे नाम की बन्दूक उसे बचायेगी क्या?

हमेशा साध रहे स्वार्थ नाम लेके तेरा।
ज़रा तू पूछ दरिंदों को भी उठाएगी क्या?

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on December 14, 2015 at 6:58pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सादर आभार
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 14, 2015 at 11:39am

बहुत अगन है सुना है श्मशान घाटों पर।
गरीब जमने लगा उनको अब तपायेगी क्या?

क्या खूब कहा पंकज भाई ...हार्दिक बधाई l

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on December 10, 2015 at 7:20pm
ग़ज़ल पर सार्थक प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार आदरणीय सतविंदर कुमार जी
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 10, 2015 at 6:57pm
वाह्ह्ह्ह्ह् बेहतरीन ग़ज़ल कही है आदरणीय पंकज जी

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