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अतुकांत - कैच जिसके उछाला गया है , उसे लेने दो भाई ( गिरिराज भंडारी )

कैच जिसके उछाला गया है , उसे लेने दो भाई

*****************************************

बाल , नो बाल थी

इसलिये पूरे दम से मारा था शाट

मेरे बल्ले का शाट

थर्ड मैन सीमा रेखा के पार जाने के लिये था

अगर बाल लपक न ली जाती तो

 

अफसोस इस बात का नहीं है बाल लपक ली गई

दुख इस बात का है, कि

मेरे बहुत करीब खड़े , स्लिप और गली के फिल्डर दौड़ पड़े

ये जानते हुये भी , ये कैच उनका नही है

आपस मे टकराये , गिरे पड़े , घायल हुये

और उस कैच को लपक लिये , जो उनके लिये था ही नहीं

थर्ड मैन पर खड़ा फील्डर आसमान ताकते खड़ा रह गया

 

बिलकुल वैसे ही , जैसे

डाटे , फटकारे , गरियाय कोई अपने बच्चों को
अपने घर में

और लपक ले पड़ोसी , भाषा भिन्नता के कारण

लाल पीला हो जाये उस बेचारे पर

जिसका उद्देश्य अपने बच्चों को सही राह में लाना हो

जो कि उसकी ज़िम्मेदारी थी है

इसीलिये शायद ,

प्रतिक्रिया कहीं से आनी थी ,

आ कहीं और से रही है

 

कैच जिसके लिये उछाला गया है , उसे लेने दो भाई

************************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 408

Comment

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Comment by vijay nikore on December 16, 2015 at 2:55pm

इस अच्छी रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय भाई गिरिराज जी।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 9, 2015 at 10:39pm
बेहतरीन समानता दर्शाई आपने।अपने भावों को पेश करने का ये अनोखा अंदाज़ है आपका।बहुत बहुत बधाई।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 9, 2015 at 4:11pm

आदरणीय गिरिराज सर, बहुत सुन्दर प्रस्तुति हुई है. हार्दिक बधाई आपको 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 8, 2015 at 11:21am

बहुत सुंदरता से बड़े भाई का फर्ज पूरा किया है भाई साहब एक अच्छी सीख देकर बहुत बहुत बधाई ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 7, 2015 at 11:02pm
सुन्दर , बधाई , आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , सादर।
Comment by Samar kabeer on December 7, 2015 at 10:41pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी,आदाब,इस बार आपकी कविता में नए इस्तिआरे देखने को मिले,और आपका यह अंदाज़ भी पसंद आया ,बहुत ख़ूब,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 7, 2015 at 8:01pm

क्या बात है अनुज कहाँ से उठाया और कहाँ गिराया  तुसी ग्रेट हो भाया .

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 7, 2015 at 10:43am
बहुत बढ़िया प्रस्तुति आदरणीय गिरिराज भंडारी जी।बधाई! लगता है आगे भी कुछ कहना शेष है इस सच्ची रचना में !

कृपया ध्यान दे...

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