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मखमली चाँदनी रोज आया करो---(ग़ज़ल)--- मिथिलेश वामनकर

212---212---212---212

 

मखमली चाँदनी रोज आया करो

पर सितारों से आमद छुपाया करो

 

तितलियों ने लिए है नए पैरहन

ऐ हवा ढंग से गुदगुदाया करो

 

सेलफोनो से आती हुई ये सदा

हर शज़र को बुला कर सुनाया करो

 

राधिका-सी जमीं रक्स करने लगे 

बादलो बांसुरी तो बजाया करो

 

औज की धडकनें थम न जाएँ कहीं

यक-बयक नौ कँवल मत खिलाया करो

 

इन गुलाबों पे फिर से जवानी चढ़े

इस तरह बाग़ में फाग गाया करो

 

एक दीवान से किस कदर दब गई

रैक को इस तरह मत सताया करो

 

बारिशों में धुली पत्तियां कह रहीं

गुनगुनी धूप को भी बुलाया करो

 

कब चले, कब रुके, ये हमें सिग्नलो

फलसफा जिंदगी का सिखाया करो

 

लॉन के छोर पर बैठ कर रो रही

ओंस को धूप से मत भिड़ाया करो

 

 

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(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 15, 2015 at 10:30pm

आदरणीय सलीम जी ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद 

Comment by SALIM RAZA REWA on November 15, 2015 at 10:27am
तितलियों ने लिए है नए पैरहन
ऐ हवा ढंग से गुदगुदाया करो।।
उम्दा

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 14, 2015 at 4:16pm

आदरणीय पंकज भाई जी ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद 

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 14, 2015 at 10:06am
कब चले, कब रुके, ये हमें सिग्नलों
फलसफा जिंदगी का सिखाया करो


उम्दा शेर, सादर अभिवादन

एक बेहद ख़ूबरू ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 13, 2015 at 1:41pm

आदरणीय बैजनाथ जी ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद 

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 13, 2015 at 1:38pm

आदरणीय मिथलेश वामनकर साहेब, शानदार व खुबसूरत ग़ज़ल कही  है आपने | ज़िंदाबाद| 

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