For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हरेक बात, करामात कह रहा हूँ मैं-- (ग़ज़ल) -- मिथिलेश वामनकर

1212 - 1122 - 1212 – 22

 

हरेक बात, करामात कह रहा हूँ मैं

वो दिन को रात कहें, रात कह रहा हूँ मैं

 

लगे है आज तो खाली ख़याल अच्छे दिन

बदल रहें न ये हालात, कह रहा हूँ मैं

 

यकीं नहीं है जिन्हें शह को शह नहीं कहते

क़ुबूल है ये मुझे मात,   कह रहा हूँ मैं

 

जो कह रहा हूँ उसे वाकिया समझ बैठे

करें जो गौर, वजूहात कह रहा हूँ मैं

 

हुई है रूह फकीरी में इस तरह तारी

हरेक दिन को जुमेरात कह रहा हूँ मैं

 

वो दिन भी आएगा खुर्शीद जब नहीं होगा

अगर थमेंगे न ज़ुल्मात कह रहा हूँ मैं

 

ये दिल की बात, ये फिक्रो-ख़याल है साहब

जो देखता हूँ वही बात कह रहा हूँ मैं

 

खुदा न मान के आदम कहा, शिकायत ये

कि उन की जात को कमजात कह रहा हूँ मैं

 

ये चाक दिल भी शराफत से सी लिया मैंने

इन आँसुओं को भी बरसात कह रहा हूँ मैं

 

 

------------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
------------------------------------------------------------

Views: 801

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 12, 2015 at 9:58pm

आदरणीय विजय निकोर सर ग़ज़ल पर सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु आपका हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 12, 2015 at 9:57pm

आदरणीय समर कबीर जी, सराहना मार्गदर्शन और उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार. आपके मार्गदर्शन अनुसार मिसरे को यूं कहा है-
जमीन बन रही ज़ुल्मात कह रहा हूँ मैं

Comment by vijay nikore on November 11, 2015 at 12:48pm

 // 

ये चाक दिल भी शराफत से सी लिया मैंने

इन आँसुओं को भी बरसात कह रहा हूँ मैं//

बहुत ही खूबसूरत गज़ल ! आनन्द आ गया। हार्दिक बधाई।

Comment by Samar kabeer on November 10, 2015 at 10:46pm
जनाब मिथिलेश वामनकर जी,आदाब,अच्छी ग़ज़ल से नवाज़ा है आपने मंच को,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।

"अगर थमेंगे न ज़ुल्मात कह रहा हूँ मैं"

इस मिसरे में "ज़ुल्मात" के साथ "थमना" मुझे मुनासिब नहीं लगता,अफ़्रीक़ा के घने जंगलों में एक जगह ऐसी है जहाँ कभी सूरज की रोशनी नहीं पँहुची,उस जगह को "ज़ुल्मात" कहते हैं, 'अल्लामा इक़बाल' की नज़्म 'शिकवा' की दो पंक्तियाँ याद आ गईं :-

"दश्त तो दश्त हैं ,दरिया भी न छोड़े हमने
बह्र-ए-ज़ुल्मात में दौड़ा दिये घोड़े हमने"

इस पंक्ति में उसी जगह का ज़िक्र किया गया है ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 10, 2015 at 6:19pm

आदरणीय श्याम नरेन् जी इस सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु आभार 

Comment by Shyam Narain Verma on November 9, 2015 at 11:14am

बहुत खूब ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, गजल पर आपको दिल से बधाई

सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, नए अंदाज़ की ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपके संकल्प और आपकी सहमति का स्वागत है, आदरणीय रवि भाईजी.  ओबीओ अपने पुराने वरिष्ठ सदस्यों की…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपका साहित्यिक नजरिया, आदरणीय नीलेश जी, अत्यंत उदार है. आपके संकल्प का मैं अनुमोदन करता हूँ. मैं…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"जी, आदरणीय अशोक भाईजी अशोभनीय नहीं, ऐसे संवादों के लिए घिनौना शब्द सही होगा. "
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . उल्फत
"आदरणीय सुशील सरना जी, इन दोहों के लिए हार्दिक बधाई.  आपने इश्क के दरिया में जोरदार छलांग लगायी…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"माननीय मंच एवं आदरणीय टीम प्रबंधन आदाब।  विगत तरही मुशायरा के दूसरे दिन निजी कारणों से यद्यपि…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा षष्ठक. . . . आतंक
"आप पहले दोहे के विषम चरण को दुरुस्त कर लें, आदरणीय सुशील सरना जी.   "
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"आप वस्तुतः एक बहुत ही साहसी कथाकार हैं, आ० उस्मानी जी. "
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"आदरणीया विभा रानी जी, प्रस्तुति में पंक्चुएशन को और साधा जाना चाहिए था. इस कारण संप्रेषणीयता तनिक…"
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"सादर नमस्कार आदरणीय सर जी। हमारा सौभाग्य है कि आप गोष्ठी में उपस्थित हो कर हमें समय दे सके। रचना…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रस्तुति नम कर गयी. रक्तपिपासु या हैवान या राक्षस कोई अन्य प्रजाति के नहीं…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"घटनाक्रम तनिक खिंचा हुआ प्रतीत तो हो रहा है, लेकिन संवादों का प्रवाह रुचिकर है, आदरणीय शेख शहज़ाद…"
3 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service