For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 पौरुष ने उठाया हाथ

सहनशीलता  ने

कर तो लिया बर्दाश्त

पर चेहरा विकृत हुआ

अधर काँपे

आँखे पनिआयी 

झट वह चौके में चली गयी

बेटी दौड़ी-दौड़ी आयी

क्या हुआ माँ ?

कैसी आवाज आयी ?

और यह क्या तू रोती है ?

नहीं बेटी, ये लकड़ियाँ ज़रा गीली है

धुंआ बहुत देती है

आँख में गडता है, पानी निकलता है

बेटी ने कहा – ‘ माँ !

गीली लकड़ी का

तुमसे क्या सम्बन्ध है ?

माँ ने कहा ‘ हम दोनों

जलती कम

और सुलगती ज्यादा हैं I’

‘और यदि लकड़ी सूखी हो,,तो  ?’

‘तो चिता बन जाती है

खुद भी जलती है

औरों को भी जलाती है’

‘तो माँ !

तुम चिता कब बनोगी ?’

(मौलिक व् अप्रकाशित )

Views: 888

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 16, 2015 at 3:27pm

तुम चिता कब बनोगी ?’  क्या बात है बड़े भाई  गोपाल जी , वाह , सटीक प्रश्न , बहुत सुन्दर कविता लगी आपकी , आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by pratibha pande on November 15, 2015 at 12:46pm

चिता की लकड़ी या गीली लकड़ी ,,इन दोनों  से हटकर एक हरी भरी लकड़ी क्यों नहीं बन पातीं ,   बहुत गहरे प्रश्न कर रही है आपकी रचना आदरणीय 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 14, 2015 at 11:46am

आ० पंकज जी - बहुत बहुत शुक्रिया .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 14, 2015 at 11:45am

आ० मिथिलेश जी - आपके प्रोत्साहन से बल मिला . सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 14, 2015 at 11:44am

आ० सौरभ जी - आपका आशीर्वाद मेरे लिए सदैव विशेष रहता है , सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 14, 2015 at 11:44am

आ० अजय  कुमार जी -  आपका कृतज्ञ  हूँ .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 14, 2015 at 11:42am

आ० राहिला जी आपका आभार .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 12, 2015 at 11:48pm

आदरणीय गोपाल सर, कविता ने बहुत गहरे तक प्रभावित किया और झिंझोड़ दिया. आपने कथ्य के मर्म को जैसा शाब्दिक किया है वह चकित करता है. इस उत्कृष्ट प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 12, 2015 at 11:14pm

आदरणीय गोपाल नारायनजी, आपकी इस कविता से मन सुन्न है.  स्त्रियों की दुर्दशा पर ऐसी सटीक रचना हाल-फिलहाल में मंच पर पोस्ट नहीं हुई है. आपकी संवेदनशीलता पर मैं अभिभूत हूँ. इस सशक्त रचना के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय.

Comment by Ajay Kumar Sharma on November 12, 2015 at 10:54pm

आदरणीय गोपाल सर अद्वितीय लेखन। मार्मिक रचना । मन को द्रवित कर गयी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   वाह ! प्रदत्त चित्र के माध्यम से आपने बारिश के मौसम में हर एक के लिए उपयोगी छाते पर…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत कुण्डलिया छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, कुण्डलिया छंद पर आपका अच्छा प्रयास हुआ है किन्तु  दोहे वाले…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया छंद रचा…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आती उसकी बात, जिसे है हरदम परखा। वही गर्म कप चाय, अधूरी जिस बिन बरखा// वाह चाय के बिना तो बारिश की…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीया "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"बारिश का भय त्याग, साथ प्रियतम के जाओ। वाहन का सुख छोड़, एक छतरी में आओ॥//..बहुत सुन्दर..हार्दिक…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्र पर आपके सभी छंद बहुत मोहक और चित्रानुरूप हैॅ। हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेश कल्याण जी।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आयोजन में आपकी उपस्थिति और आपकी प्रस्तुति का स्वागत…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आप तो बिलासपुर जा कर वापस धमतरी आएँगे ही आएँगे. लेकिन मैं आभी विस्थापन के दौर से गुजर रहा…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service