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ग़ज़ल -- दोस्तों का दिनेश भाई है

2122--1212--22

पीर आँखों में जो पराई है
हम फकीरो की ये कमाई है

दौरे-हाज़िर में रोज़ सूरज ने
इन अँधेरों से मात खाई है

बाप को फिर से एक बेटे ने
उसकी नज़रों की हद बताई है

जिसने रिश्वत में रोशनाई दी
उस पे किसने क़लम उठाई है

अपनी हद में रहो, सबक देकर
मौज़ साहिल से लौट आई है

क्या ज़मीं आसमान मिल ही गए
कहकशां जो ये मुस्कुराई है

दुश्मनों का अगरचे है दुश्मन
दोस्तों का दिनेश भाई है

___ दिनेश कुमार ०१/११/१५

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by shree suneel on November 3, 2015 at 10:18pm
बहुत हीं उम्दा ख़ूबसूरत ग़ज़ल.. . व्वाहह!! हर शे'र कामयाब.
आदरणीय दिनेश जी बधाई आपको इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए.
Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 2, 2015 at 5:29pm

दौरे-हाज़िर में रोज़ सूरज ने
इन अँधेरों से मात खाई है....बिलकुल सही 

बाप को फिर से एक बेटे ने
उसकी नज़रों की हद बताई है....काबिले तारीफ़ ..

इस ग़ज़ल की जितनी तारीफ़ की जाए कम है ..इस नया पण है ताजगी है .चिंतन है 

भाई को बधाई है 

Comment by Ravi Shukla on November 2, 2015 at 3:09pm

आदरणीय दिनेश बहत ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई है. हर शेर बहुत ही अच्‍छा लगा इसलिये हर शेर पर दिली मुबारक बाद कुबूल करें

बाप को फिर से एक बेटे ने
उसकी नज़रों की हद बताई है  बहुत खूब ,   जेनरेशन गैप  पर अलग ही तरीके से बात कही है।

अपनी हद में रहो, सबक देकर
मौज़ साहिल से लौट आई है सुन्‍दर शेर  हासिले ग़ज़ल   दिली मुबारक बाद इन दोनो शेर के लिये अलग से । सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 2, 2015 at 2:28pm

आदरणीय दिनेश भाई जी शानदार ग़ज़ल हुई है. शेर दर शेर दाद और मुबारकबाद कुबूल फरमाए. 

इन दो अशआर के लिए दिल से दाद हाज़िर है-

जिसने रिश्वत में रोशनाई दी
उस पे किसने क़लम उठाई है

अपनी हद में रहो, सबक देकर
मौज़ साहिल से लौट आई है

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