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बिट्टू वाली नाव- (लघु कथा)

'बिट्टू वाली नाव'- (लघु कथा)

तीनों में से सिर्फ बिट्टू की नाव ही तैर पायी।दोनों बहनें फिर पीछे रह गयीं थीं। रह रह कर पल्लवी को नदी में अपनी और छोटी बहन की डूबती नावों का दृश्य याद आ रहा था।
बेचैन हो कर वह अपनी माँ से पूछ ही बैठी-"हमारी ज़िद पर इतने दिनों के बाद दादाजी ने हमारे लिए नावें बनायीं थीं। ऐसा क्यों मम्मी कि केवल बिट्टू की ही नाव सही तरीके से बनी और वह अच्छे से तैरती रही ?"
शिल्पा बेचारी बच्चों से क्या कह पाती, लेकिन भावुक होकर दोनों बेटियों के सिर पर हाथ फेरते समय उसके मुँह से धीरे से यह निकल ही गया -"इकलौता पोता है न वह !"

मौलिक व अप्रकाशित
_शेख़ शहज़ाद उस्मानी

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Comment by satish mapatpuri on September 20, 2015 at 5:36pm

इकलौता पोता है न वह !" बालक और बालिका में फर्क समझने वाली मनोवृति पर सीधा वार किया है आपने. धारदार कृति के लिए बधाई उस्मानी साहब .

Comment by pratibha pande on September 19, 2015 at 5:30pm

आपने नावों का प्रतीक लेकर हमारे समाज के एक काले पहलू को बड़े ही मार्मिक ढंग से बयां कर दिया है ,इस रचना पर आपको ढेरों बधाइयाँ आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी 

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