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मै नारी हूँ

मै नारी हूँ
अक्सर मै इसी सोच में खो जाती हूँ
क्या मुझे वो अधिकार मिला है ?
मै जिसकी अधिकारी हूँ ?
मै नारी हूँ

मनु कि  अर्धांगिनी मै
विष्णु- शिव कि संगिनी मै
मै अक्सर सोचा करती हूँ
क्या मै लक्ष्मी  और दुर्गा की अवतारी हूँ ??

मै धर्म-धारण की प्रतिमूर्ति हूँ
मै सहनशक्ति की मूर्ति हूँ
जब अर्ध पुरुष हो कोई तो  मै ही उसकी पूर्ति हूँ
फिर भी जब जब पौरुष किसी का जलता है
तो सोचती हूँ क्या सिर्फ जलन की मै अधिकारी हूँ ??

जब जब दुर्योधन कोई ललकार लगाता है ,
तब तब युधिष्ठिर मेरा दावं लगाता है ,
जब हर जीत का होता है यहाँ  खेल कोई
मै आँखे मीचे खड़ी बेबस पांडव प्यारी हूँ ..

हर राम के साथ वनवास को जाती हूँ मै
और चुपचाप हर दुःख दर्द सह जाती हूँ मै
फिर भी परख मेरे चरित्र की होती है
तब चुपचाप  आग में खड़ी जनक-कुमारी हूँ .,,

जब जब पुरषार्थ किसी का हो जाता है छिन्न-भिन्न
तब तब मै पुकारी जाती हूँ चरित्रहीन
चुपचाप इसे  सुनकर मुझको शर्म खुद पर ही आती है
की क्यूँ नारी ही सारी दुनिया मै चरित्रहीन पुकारी जाती है ??

चुपचाप प्रसव पीड़ा नारी सह जाती है ,
हर दर्द वो बिना शिकन के सह जाती है ,
क्यूँ नारी हूँ? इसी संशय में रह जाती है ,
और समाज  में अबला खुद को कह जाती है ??

जब जब मैंने अपना भाव व्यक्त किया है
तब तब इस समाज ने रंजित रक्त किया है
जब जब कोई लक्ष्मण आवेश  में आता है
मै नाक कटी  शूर्पनखा   दुखियारी हूँ ,

पूछती हूँ मै मुझे कोख में मारने वालों से ,
क्यूँ हर घर में जलती  आई हूँ ,सालों-सालों से ??
नफरत करती हूँ मै मंदिर मस्जिद शिवालों से ,
नफरत है मुझको इन मूर्ति पूजने वालों से ..

कहने को कोई मुझको दुर्गा-काली का अवतार कहे
या लक्ष्मीरूपा और सरस्वती कोई  मुझको बार-बार कहे
छोड़ दो तुम अब किसी देवी के चरणों पे गिरना
कोख से फेंकी हुई हर नवजात बात यही बार बार कहे

व्यभिचारी  बन जब समाज  यहाँ कोई जीता है
क्या उसके लिए नही कोई धर्मग्रन्थ,कुरान और गीता है .?????


( नारी-जगत  को समर्पित मेरी आगामी काव्यसंग्रह  " नारी तू नारायणी " से )
( सर्वाधिकार सुरक्षित द्वारा राजीव कुमार पाण्डेय )

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Comment by Rajeev Mishra on April 13, 2011 at 7:43pm
बहुत बार आपकी लेखनी को पढने का सयोंग प्राप्त हुआ है राजीव भाई जी
पर जिस बात को आज आपने अपनी लेखनी से कलमबध  किया है वो
वास्तव मे सराहनीय है इस मे लेस मात्र भी शक नहीं कि आज २०११
में भी भ्रूण हत्या जैसे घिनोने अपराध होते हैं और सर राह बहनों के
साथ अभद्रता होती है !

आपकी लेखनी को एक बार फिर प्रणाम बहुत सुंदर रचना !
Comment by Sanjay Rajendraprasad Yadav on April 13, 2011 at 6:57pm

 

बहुत अक्षी आप को बधाई, आप एक रचना लिखे "आज की नारी"

"नारी आखिर नारी होती है

उनके अथाह प्रेम में दुनिया समाई होती है " वह प्रेम किसी भी रूप में हो सकता है,.............


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 13, 2011 at 8:44am

राजीव जी, विषय काफी ससक्त है, ख्यालात भी अच्छे है शुरुआत भी आपने सही किया है, किन्तु बीच में कई जगह कविता पर पकड़ ढीला पड़ा है, दोहराव की स्थिति प्रतीत हो रहा है, आप इस रचना को थोड़ा गुनगुनाते हुए प्रवाह को ध्यान रखते हुए एक से अधिक बार पढ़े और जहा जहा पर अटकाव महसूस हो उसे चिन्हित करे, पुनः सुधार के साथ रचना को पढ़े, यकिन मानिये कस जाएगी यह रचना, यदि संभव हो तो किसी अच्छे मित्र को भी दिखाए |

बहरहाल, सुंदर प्रयास, बधाई स्वीकार हो |

Comment by nemichandpuniyachandan on April 13, 2011 at 7:20am

Rajiv ji,puchati hoon mein mujhe kokh me maarne walon se.Sundar abhivykti ke liye aabhaar.

 

Comment by Shaileshwar Pandey ''Shanti'' on April 13, 2011 at 12:29am
Ati Sundar Rachana. Bahut hi sarahaniy hai. Jitani bhi tarif ki jai kam hiAAhai. Mai Aati shakti Ma se prathanarat hun ki we aap ki rachanawo me char chan lagayen.
Comment by विवेक मिश्र on April 13, 2011 at 12:08am
राजीव जी! इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई.

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