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पता(लघु कथा)
-आप मुम्बई में रहते हो?मैंने तो कुछ और सोचा था।मैं भी तो मुम्बई में ही हूँ।
-अच्छा,कहाँ?
-एन एम
-वो क्या हुआ?
-मुम्बईकर को तो जानना चाहिये
-अच्छा,बताइये
-लेकिन यह आपको पता होना चाहिए
-अपना पता न बताने के बहुत-से बहाने होते हैं।
-आप एन एम नहीं जानते,तो मुम्बई में क्या जानते हैं?
-दोस्तों को जो अपने पते कभी कुछ,तो कभी कुछ बताते हैं ।
-देखिये,कोल्हापुर तो मेरा मायका है,मुम्बई तो ससुराल हुई।
फिर किंचित ख़ामोशी के उपरांत फेसबुक पर संदेश तैरता है
-तो बाय कहें क्या?
-ओके,बाय-बाय।
फिर संपर्क भंग हो जाता है।नवी मुम्बई अनकही रह जाती है।
"मौलिक व अप्रकाशित"@मनन

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Comment by Manan Kumar singh on September 10, 2015 at 8:29am
आदरणीय सौरभजी, लघु कथा को मान देने के लिए आपका आभार व्यक्त करता हूँ,सादर।
Comment by Manan Kumar singh on September 10, 2015 at 8:23am
श्रद्धेय मोहनजी,अर्चनजी,गिरिराज भाई स्नेह अजर मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 6, 2015 at 11:44pm

चैट बॉक्स की नयी दुनिया का यह आधुनिक पहलू है, आदरणीय मननजी, जो दमित इच्छाओं को कुरेद-कुरेद कर, वायवीय ही सही, आकार देना चाहता है. एक बड़ा वर्ग इस ’वर्चुअल वर्ल्ड’ को अपने लिहाज से जीता है. वर्जनाओं को नकारने के फेर में कुत्सित विचारों को स्वर पाता हुआ देखता है. उसकी ’नवी मुम्बई’ कई बार अनुत्तरित रह जाती है तो कई बार, मानसिक ही सही, महालक्ष्मी-ग्राण्ट रोड के दरम्यान की बस्ती के स्तर को जीने लगती है. 

आपकी इस लघुकथा को अबतक की प्रस्तुत हुई सर्वश्रेष्ठ लघुकथा के तौर पर स्वीकार कर रहा हूँ. संवादों में चुटीलापन और कथ्य में पैनापन इस लघुकथा की विशेषता है. 

सादर शुभकामनाएँ व बधाइयाँ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 6, 2015 at 8:56pm

आदरणीय मनन भाई , अच्छी लगी आपकी अनकही मुम्बई , बधाइयाँ ।

Comment by Archana Tripathi on September 6, 2015 at 12:58am
आदरणीय मनन कुमार सिंह जी ,खूबसूरत लघुकथा के लिए हसर्दिक बधाई ।
Comment by मोहन बेगोवाल on September 4, 2015 at 10:35pm

 आदरनीय मनन जी, इस  लघुकथा के लिए बधाई

Comment by Manan Kumar singh on September 3, 2015 at 11:20pm
आदरणीय तेज प्रताप जी,मिथिलेश जी तथा आदरणीया कांता जी सादर आभार आपका,प्रेरणा प्रदान करने के लिए।वस्तुतः चलते-चलते कथा बानी है।
Comment by kanta roy on September 3, 2015 at 10:23pm

वाह ! क्या नवी मुंबई का अनकही भी सब कह गया । बेहतरीन लघुकथा हुई है ये आदरणीय मनन कुमार जी । बधाई ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 3, 2015 at 6:17pm

इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन जी 

Comment by TEJ VEER SINGH on September 3, 2015 at 2:36pm

हार्दिक बधाई  आदरणीय  मनन कुमर सिंह जी!

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