For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तरही गज़ल (रात को रो-रो सुबह किया या दिन को ज्यों-त्यों शाम किया)

है काम बहुत कुछ करने को, यूँ हमने कब आराम किया

दिन न देखा रात न देखी बस जीवन भर काम किया

 

मज़दूर हूँ मै, मजबूर हूँ मै, हर हाल में मैंने काम किया 

फिर भी सबने मेरे आगे, दर्द का कड़वा जाम किया

रब से तुझको हरदम माँगा दिल भी तेरे नाम किया

फिर भी तूने मेरे हक में बस झूठा इल्ज़ाम किया 

 

साथ निभाना फ़ितरत मेरी, क्या ये मेरी गलती है

सबने मेरा हिस्सा लूटा और मुझे बदनाम किया

 

खूब निभायी रस्म वफ़ा की सबकी खातिर खूब लुटे

खामोश रहे, सौ ज़ुल्म सहे, खुद के सर इल्ज़ाम किया

बस मेरे हालत न बदले जाने कितने दिन गुज़रे

रात को रो-रो सुबह किया या दिन को ज्यों-त्यों शाम किया

      

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 552

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 27, 2015 at 9:22pm

आ० नादिर भाई जी ,बहुत बढ़िया ग़ज़ल लिखी है आपने दिल से बधाई लीजिये |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 27, 2015 at 9:03pm

जनाब नादिर भाई काफी दिनों बाद आपकी किसी रचना से गुज़र रहा हूँ बहुत अच्छा लगा बेहतरीन ग़ज़ल है दाद ओ मुबारक़बाद कुबूल फरमायें

Comment by नादिर ख़ान on July 27, 2015 at 6:04pm

आदरणीय मिथिलेश सर बहुत शुक्रिया आपका, सीखने की कवायद जारी है हमारी ...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 27, 2015 at 4:34pm

चलिए आपकी तरही मुशायरे की ग़ज़ल आज पढने मिल गई.बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है.बहुत अच्छा मतला हुआ है. गिरह भी खूब लगाईं है. इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर दाद हाज़िर है...

Comment by नादिर ख़ान on July 27, 2015 at 3:40pm

आदरणीय समर साहब,गिरीराज जी इस्लाह और दाद के लिए शुक्रिया।

तरही मुशायरे में शामिल न हो सकने का अफ़सोस है| शनिचर को दिन भर नेट नहीं आया, रात १२ बजे तक कंप्यूटर ऑन रखे रहे कि शायद आ जाये मगर उसे न आना था सो न आया। बहुत हाथ पैर मारे, कम्प्लेन भी किये तब कहीं इतवार को ठीक हुआ । खैर इंसानी बनाई चीज़ है वक़्त - बेवक़्त धोका तो देगा ही।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 27, 2015 at 1:01pm

आदरणीय नादि खान भाई , शायद आपने मुशाय्रे के बाद गज़ल कही है ?  बहुत खूबसूरत अशआर  हुये हैं , आपकोअ ग़ज़ल के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Samar kabeer on July 27, 2015 at 12:00am
जनाब नादिर ख़ान जी,आदाब,बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने,मुशायरे में क्यूँ पोस्ट नहीं की ?,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं,एक मिसरे की तरफ़ तवज्जो दिलाना चाहूँगा :-

"ख़ामोश रहे, सौ ज़ुल्म सहे, खुद के सर इल्ज़ाम किया"

ये मिसरा बह्र से ख़ारिज हो रहा है,हो सकता है ये typing mistake हो ,देख लीजियेगा ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
13 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service