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सनकी ( लघुकथा )

विदेशी कुर्सी,दुनिया की नम्बर एक साॅफ्टवेयर कम्पनी , लाखों का पैकेज। ....लेकिन मन...? एक बंधन सदा मन को जकड़े रहता था । कितने वेब डिजाइन किए।पर प्रोजेक्ट की सफलता खुशी कहाँ दे पाती थी ।

देश के प्रति जिम्मेदारी ....
वतन की मिट्टी की पुकार ,अपने बन्धन में जकड़ रही थी ।

उसके भारतीय सहकर्मी भी विदेशी नीति से संतुष्ट नहीं थे ।

गिरीश के नेतृत्व में जब उनलोगो ने लाखों के पैकेज वाली नौकरी से इस्तीफ़ा दिया तो सहयोगियों ने उन्हें " सनकी " की उपाधि से नवाज़ा ।

आते वक्त गिरीश ने मीटिंग में सिर्फ एक ही बात कही थी कि,

" हमारी समस्त ऊर्जा और प्रतिभा हमारे देश की धरोहर है और हम देश को उनकी धरोहर लौटाने जा रहे है । " जिसे सुनकर मैनेजमेंट भौेचक्का रह गया था।

आज वे " सनकी " दुनिया में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं नम्बर वन मल्टीनेशनल कम्पनी के फाऊँडर के रूप में ।



कान्ता राॅय
भोपाल
मौलिक और अप्रकाशित

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Comment

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Comment by kanta roy on July 14, 2015 at 7:56pm
हृदय तल से आभार आपको आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी कथा पर बेहद सार्थक प्रतिक्रिया के लिए
Comment by pratibha pande on July 14, 2015 at 6:49pm

भारत  को  विश्व  में  उंचा  स्थान  स्थान  दिलाने  के  लिए  ऐसे  और  भी  लाखों  सनकी  चाहिए  हमे I  बहुत  अच्छी  रचना आ० कांता रॉय जी 

Comment by kanta roy on July 13, 2015 at 9:52pm
आभार आपको कथा पसंद करने के लिए आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार जी ।
Comment by kanta roy on July 13, 2015 at 9:49pm
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी , इस कथा पर मुझे आपसे यह सलाह चाहिए कि लघुकथा के " अनकहा " के अंतर्गत नीचे वाली पंक्तियों को अगर हटा दू तो क्या सही रहेगा ??
कृपया मार्गदर्शन करें यहाँ ।निम्नलिखित पंक्तियाँ के ना रहने से क्या कथा पर प्रभाव पडेगा ?
" आज वे " सनकी " दुनिया में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं नम्बर वन मल्टीनेशनल कम्पनी के फाऊँडर के रूप में ।"
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 13, 2015 at 9:46pm

बढ़िया लघुकथा हुई है आदरणीया कांता जी. इस सकारात्मक प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 

Comment by kanta roy on July 13, 2015 at 9:44pm
आपको कथा अच्छी लगी तो मेरा लिखना सार्थक हुआ आदरणीया राजेश कुमारी जी आभार आपको हृदय तल से ।
Comment by kanta roy on July 13, 2015 at 9:43pm
आभार आपको आदरणीय प्रदीप जी कथा पंसदगी के लिए ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 13, 2015 at 3:45pm

बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है आदरणीया कांता जी. इस सकारात्मक और प्रेरणास्पद प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 13, 2015 at 2:44pm

वाह्ह्ह बहुत  शिक्षाप्रद अच्छी सकारात्मक  सोच वाली लघु कथा काश आज के युवा इस बात को समझें 

हार्दिक बधाई आ० कांता जी 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 13, 2015 at 12:57pm

प्रेरक कथा 

अनुकरणीय 

सादर बधाई 

आदरणीया जी 

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