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मैं चुप था
मगर शामिल नहीं था
तुम्हारे फासलों के
फ़ैसले में

मेरी चुप्पी का
हर एक अर्थ लगाया था
तुमने अपनी समझ से

मेरे चुप रहने का अर्थ
तुमने उस दिन भी
गलत समझा था
जब कि शिरू हो रही थी
जिन्द्गी की यात्रा

और मेरी चुप्पी का अर्थ
आज भी गलत ही है
जबकि समाप्ति की ओर है
जिन्द्गी की यात्रा

क्योंकि तुमने
मेरी चुप्पी का हमेशा
वो अर्थ लगाया
जो अनुकूल था
तुम्हारे लिये

उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Saurabh Pandey on July 16, 2015 at 6:36pm

स्वतः ही किसी के कहे का या उद्धरण का अर्थ लगा लेना उचित नहीं लेकिन ऐसा ही होता है. सहज शब्दों में सहज कविता केलिए हार्दिक बधाई, आदरणीय. हार्दिक शुभकामनाएँ

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 8, 2015 at 9:35am

बहुत बढ़िया आदरणीय कटारा  जी

क्योंकि तुमने
मेरी चुप्पी का हमेशा
वो अर्थ लगाया
जो अनुकूल था
तुम्हारे लिये

Comment by विनय कुमार on July 6, 2015 at 7:41pm

अच्छी कविता आदरणीय उमेश कटारा जी , " शिरू " को शुरू कर लीजिये | बधाई इस रचना के लिए.

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on July 6, 2015 at 7:16pm

आदरणीय umesh katara जी बधाई इस भावपूर्ण प्रस्तुति के लये ...सादर 

Comment by Shyam Narain Verma on July 6, 2015 at 10:06am
बहुत सुन्दर ... सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय

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