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अदालत ने मेरा क़ातिल मुझे ठहरा दिया साहिब

1222 1222 1222 1222
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मुहब्बत है कभी जिसने मुझे कहला दिया साहिब
मगर फिर घाव उसने ही बहुत गहरा दिया साहिब 

जरूरत ही नहीं होती मुहब्बत में व़फाओं की 
के बच्चों की तरह उसने मुझे बहला दिया साहिब

सड़क पर भूख से बेचैन माँ आँसू बहाती है
निवाला बेटे को जिसने ,कभी पहला दिया साहिब
 
मुहब्बत मिट नहीं पायी दीवारों में चुनी फिर भी
रक़ीबों ने जमाने से बहुत पहरा दिया साहिब

बहुत छेड़ा है दुनिया ने खुदा की पाक धरती को
हिली धरती मगर ऐसी जहां दहला दिया साहिब

अभी तक भी मेरे दिल में कहीं महफूज बहती है
नदी है वो मगर उसने मुझे सहरा दिया साहिब

कहाँ तक ढूँढ़ती फिरती ,अदालत भी मेरा कातिल
अदालत ने मेरा कातिल , मुझे ठहरा दिया साहिब

मौलिक व अप्रकाशित 
उमेश कटारा

Views: 554

Comment

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Comment by umesh katara on May 23, 2015 at 6:22pm

शुक्रिया Samar kabeer जी ..

Comment by umesh katara on May 22, 2015 at 8:35am
शुक्रिया डा गोपाल नारायन जी ..
Comment by umesh katara on May 22, 2015 at 8:28am
shukriya krishna mishra ji
Comment by umesh katara on May 22, 2015 at 8:27am
शुक्रिया श्री suneelji
Comment by umesh katara on May 22, 2015 at 8:26am
शुक्रिया वीनस केसरी जी
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 21, 2015 at 11:47pm

क्या बात है आ० उमेश सर!छा गए!मजा आ गया! बेहतरीन गजल पर हार्दिक बधाई व् शुभकामनाए!

Comment by shree suneel on May 21, 2015 at 3:01pm
सड़क पर भूख से बेचैन माँ आँसू बहाती है
निवाला बेटे को जिसने ,कभी पहला दिया साहिब.. उम्दा शे'र
ख़ूबसूरत ग़ज़ल आदरणीय. बधाई.. बधाई..
Comment by वीनस केसरी on May 21, 2015 at 11:25am

बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है ... मुबारकबाद

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 21, 2015 at 11:13am

कहाँ तक ढूँढ़ती फिरती ,अदालत भी मेरा कातिल
अदालत ने मेरा कातिल , मुझे ठहरा दिया साहिब    -------------- कटारा जी . बल्ले बल्ले  .

Comment by Samar kabeer on May 21, 2015 at 11:00am
जनाब उमेश कटारा जी,आदाब,इस कामयाब ग़ज़ल के लिये शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं।

"कहाँ तक ढूँढ़ती फिरती ,अदालत भी मेरा कातिल
अदालत ने मेरा कातिल , मुझे ठहरा दिया साहिब"

आपका यह शैर सुनकर डॉ राहत इन्दोरी का शैर याद आ गया :-

"अब कहाँ ढूँढने जाओगे हमारे क़ातिल
आप तो क़त्ल का इलज़ाम हमीं पर रख दो"

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