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तरही ग़ज़ल   

2122  1122  1122 22   

ये तबाही भरे मंजर नहीं देखे जाते

आँखों में गम के समंदर नहीं देखे जाते

फलसफा इश्क का मैं आज तुम्हे समझा दूं

इश्क में रहजन-ओ –रहवर नहीं देखे जाते

एक मुफलिस की ग़ज़ल सुनके बज्म झूम उठी

रुतवे महफ़िल में सुखनवर नहीं देखे जाते

इक सदी होने को आयी हमें आज़ाद हुए

मुझसे  हैं लोग जो बेघर नहीं देखे जाते

रिंद गर सच्चा तू होता तो खुद समझ लेता

खाली क्यूँ मुझसे ये सागर नहीं देखे जाते

खेलती थी जो मेरे साथ कभी बचपन में

गुल सी जब खिल गयी तेवर नहीं देखे जाते

शक्ल में गुल की दिया आज तुम्हे ये दिल है

तुहफे में गुल हो या जेवर नहीं देखे जाते

अहदे नौ में तो कबूतर को सुकूँ खूब मिला

देते सन्देश कबूतर नहीं देखे जाते

अपनी महबूबा का सौदा भी जो कर सकते हैं

ऐसे नामर्द ये दिलवर नहीं देखे जाते

मन को समझा लो हिदायत ये तुम्हे है मेरी

गुल हसीं, हाथ से छूकर नहीं देखे जाते

दूध, तिल, दीप पुये सब हैं नदारत अब तो

केक अब कटते ये घर घर नहीं देखे जाते

सीने में दिल था तो पत्थर को सर झुकाता था 

दिल जो पत्थर हुआ  पत्थर नहीं देखे जाते

बांध, पुल और सड़क देखो जहाँ बनने हैं

वास्ते इनके ये दफ्तर नहीं देखे जाते

खाद के नाम पे खेतों को बिषैला है किया

खेत अब अपने ये बंजर नहीं देखे जाते

हौसलों से ही ग़ज़ल जिनके यहाँ फूली फली

अब वो उस्ताद ही अक्सर नहीं देखे जाते

 

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 9, 2015 at 4:19pm

आदरणीय सौरभ सर ..आपकी प्रतिक्रिया का बेसब्री से इंतज़ार रहता है ..गलतियाँ होंगी वहां आपकी फटकार और फिर सकारात्मक मशविरा बिषय बस्तु को भली भांति समझने के साथ द्रष्टि में पैना पन लाता है वही रचना पर आपकी तारीफ़ से मन कितना प्रफुल्लित हो जाता है लिखना मुश्किल है ..इस उन्माद में फिर गलती होगी तो फिर कुछ न कुछ सीखने को मिलेगा ....आप का स्नेह और मार्गदर्शन सदा मिलता रहे  सादर प्रणाम के साथ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 9, 2015 at 4:06pm

आदरणीय वीनस जी ..आपका मार्गदर्शन सतत मिला ..ये हकीकत है की इस मंच से जुड़कर ही मैंने ग़ज़ल का ककहरा सीखा हर कदम पर आपका मार्गदर्शन मिला  आज आपके इन शब्दों से मुझे नयी उर्जा मिली है सादर धन्यवाद के साथ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 9, 2015 at 3:59pm

आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..आपका स्नेह मुझे हमेशा मिलता रहा है ..आपकी उत्साह बढाती प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से धन्यवाद सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 8, 2015 at 7:39pm

हौसलों से ही ग़ज़ल जिनके यहाँ फूली फली

अब वो उस्ताद ही अक्सर नहीं देखे जाते  .. ...........    :-)))

इस प्रस्तुति केलिए हार्दिक शुभकामनाएँ, आदरणीय आशुतोष जी.

Comment by वीनस केसरी on July 5, 2015 at 1:48am

वाह बहुत खूब


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 3, 2015 at 6:07pm

हौसलों से ही ग़ज़ल जिनके यहाँ फूली फली

अब वो उस्ताद ही अक्सर नहीं देखे जाते

     क्या बात है , दिल का दरद आखिर  ढल ही गया शे र में । बहुत सुन्दर , पूरी गज़ल के लिये बधाई आपको ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 3, 2015 at 3:15pm

आदरणीय नीरज जी रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 3, 2015 at 10:43am

आदरणीय मिथिलेश जी आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया से सतत हौसला मिलता है ..हार्दिक धन्यवाद के साथ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 3, 2015 at 10:36am

आदरणीय महर्षि जी ..रचना पर आपकी सकारात्मक उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद सादर 

Comment by Neeraj Neer on July 3, 2015 at 10:16am

वाह वाह बहुत खूब गजल हुई है ..... 

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