For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पुष्प अधखिले : हरि प्रकाश दुबे

पुष्प अधखिले : हरि प्रकाश दुबे

 

ओस की बूंदों में भीग कर

श्रृंगार नया मन रूप का कर

सूरज की रोशनी में चमकते हुए

खूब इठलाते हैं, पुष्प अधखिले !

 

मंदिर- मज़ार में चढाए जाते है

प्रभु चरणों मै अर्पित हो कर

मन में एक विश्वाश जगा

फूले नहीं समाते हैं, पुष्प अधखिले ! 

 

प्रिय को समर्पण की चाह में

किताबों में रख दिए जाते है

प्रेम के इज़हार और इंतज़ार में

सूख कर भी मुस्कराते हैं, पुष्प अधखिले !

 

तन के श्रृंगार को कभी गेसूओं में

कभी माला बन उर में लटक जाते हैं

कभी प्रिय के होंठों को छू जाते हैं

हर्षित कर जाते हैं , पुष्प अधखिले !

 

जीवन के हर उल्लास पर

हर्ष पर ,विषाद पर

सुख की सेज या मृतशय्या हो  

हरदम साथ निभाते हैं, पुष्प अधखिले !

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित”

Views: 660

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on June 28, 2015 at 4:16am

आदरणीय हरि प्रकाश भाई जी, इस सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई आपको

Comment by shree suneel on June 25, 2015 at 6:23pm
पुष्प अधखिले.... अच्छी रचना आदरणीय हरि प्रकाश जी. हार्दिक बधाई आपको.
Comment by kanta roy on June 25, 2015 at 12:58pm
प्रिय को समर्पण की चाह में
किताबों में रख दिए जाते है
प्रेम के इज़हार और इंतज़ार में
सूख कर भी मुस्कराते हैं, पुष्प अधखिले .....हर शब्द हर पंक्ति में वर्णित अधखिले पुष्प की गरिमा कायम की है आपने आदरणीय हरि प्रकाश दुबे जी ....वाह देखिए तो क्या बात कही कही है यह भी गजब की .......!!!
Comment by Hari Prakash Dubey on June 24, 2015 at 8:53pm

आदरणीय  Dr. Vijai Shanker सर , बहुत बहुत धन्यवाद  आपका  ! सादर  

Comment by विनय कुमार on June 24, 2015 at 8:49pm

// सुख की सेज या मृतशय्या हो
हरदम साथ निभाते हैं, पुष्प अधखिले // , बहुत सुन्दर रचना , बधाई आदरणीय.

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 24, 2015 at 8:41pm
सूख कर भी मुस्कराते हैं, पुष्प अधखिले !
बहुत खूब , आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी, बधाई , सादर।
Comment by Hari Prakash Dubey on June 24, 2015 at 8:06pm

 आदरणीय  डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर  अभी ठीक  करता हूँ , आभार  आपका  ! सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 24, 2015 at 7:57pm

मित्र 'शृंगार'  लिखें . खिले पुष्प की चर्चा भी हो . सादर .  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
11 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service