For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -नूर: मेहंदी उनकी बहुत रची होगी.

२१२२/१२१२/२२ (११२)
लोग समझे कि शाइरी होगी
बात तो सिर्फ़ आप की होगी
.  
रोज़ साहिल पे आ के रुकती है
शाम की कोई बे-बसी होगी
.
तेरे जाने का ग़म रहा मुझ को
ग़म को कितनी खुशी हुई होगी.
.
अपने जादू से जीत लेती है
ये कज़ा भी कोई परी होगी.
.
ले चलूँ बेटी के लिए गुडिया
मुँह फुलाए वो अनमनी होगी.
.
मेरे दर पे ख़ुशी है आने को
आती होगी!! कहीं रुकी होगी.
.
दर्द की चींटियाँ लिपटती हैं

दिल में यादों की चाशनी होगी.
.
जिस गली में ठिठक रहे हैं क़दम
वो गली यार की गली होगी.
.
इश्क़ दुनिया से तो छुपाए रखा
फिर भी कोई नज़र लगी होगी 
.
आप की बात मान लेता हूँ
आप कहते हैं तो सही होगी.
.
शह्र लड़ने लगा है जिस पे तमाम 
बात पहले वो आपसी होगी.
.
हश्र पर साथ कुछ नहीं होगा
सिर्फ़ कर्मों की पोटली होगी.
.
‘नूर’ आँखों से सुर्खियाँ लेकर
मेहंदी उनकी बहुत रची होगी.
.
निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित 

Views: 882

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वीनस केसरी on June 18, 2015 at 1:56pm

ज़िन्दाबाद ज़िन्दाबाद ज़िन्दाबाद ज़िन्दाबाद

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 18, 2015 at 9:11am

शुक्रिया आ. समर कबीर साहब... आप ने बहुत महीन बात समझाई है ..
दरअसल मैंने शुरू में यूँ कहा था 
"इस गली में ठिठक रहे हैं क़दम
ये गली यार की गली होगी"....... लेकिन न जाने क्यूँ ..फिर ख़ुद ही उलझ गया ...
आप ने ध्यान दिलाया तो  मूल प्रति में अभी सुधार किये लेता हूँ 
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 18, 2015 at 9:09am

शुक्रिया आ. जान साहब 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 18, 2015 at 9:08am

शुक्रिया आ. मनोज जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 18, 2015 at 9:08am

शुक्रिया आ. डॉ श्रीवास्तव सर 

Comment by Samar kabeer on June 17, 2015 at 11:15pm
जनाब निलेश "नूर" जी,आदाब,बहुत ख़ूबसूरत मुरस्सा ग़ज़ल कही है आपने,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।

"जिस गली में ठिठक रहे हैं क़दम
वो गली यार की गली होगी"

इस शैर में तारीफ़ के अलावा कहने के लिये कुछ भी नहीं है लेकिन एक बारीक नुक्ता बताना चाहूँगा "वो" शब्द में कन्फ़्यूज़न है और आप की रदीफ़ भी कन्फ़्यूज़न वाली है,"होगी" यानी इसमें शक का पहलू है ,यक़ीन का नहीं ,अब अगर "वो" शब्द की जगह "ये" शब्द रखें तो शैर में शक और यक़ीन का जो तज़ाद पैदा होगा वो बहुत ख़ूबसूरत होगा ,आप ख़ुद एक अच्छे शैर फ़ह्म हैं,उम्मीद है इस बारीकी को बहतर समझेंगे ।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 17, 2015 at 9:11pm

ले चलूँ बेटी के लिए गुडिया
मुँह फुलाए वो अनमनी होगी.

वाह आ० nilesh सर! सुन्दर गजल हुयी है! बधाई!

Comment by मनोज अहसास on June 17, 2015 at 8:34pm
वाह वाह बहुत खूब
बेटी की गुड़िया के साथ मेरी कविता भी लेकर जाइयेगा सर
सादर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 17, 2015 at 8:17pm

पुरनूर कोहेनूर आदरणीय  नूर

कुछ हमें भी  सिखाएं शऊर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service