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ग़ज़ल -- मेहनत से कमाता हूँ मैं ...

२२१-१२२१-१२२१-१२२

तलवार से तीरों से न ख़ंज़र से लड़ा हूँ
ख़ुद अपनी अना ही के मुक़ाबिल मैं खड़ा हूँ

मेहमान नवाज़ी मैं दिलो जान से करता
दौलत तो नहीं पास मेरे, दिल का बड़ा हूँ

मेहनत से कमाता हूँ मैं हर अपना निवाला
ईमाँ की कसौटी पे मैं कुन्दन का कड़ा हूँ

घर के लिए राशन लूँ या बच्चों की किताबें
मँहगाई के इस दौर में, मुश्किल में पड़ा हूँ

कहते हैं मुझे लोग मुहब्बत का मसीहा
दुनिया से मैं नफ़रत को मिटाने पे अड़ा हूँ

ये वक़्त बताएगा मैं पत्थर हूँ या हीरा
फ़िलहाल किसी भी न अँगूठी में जड़ा हूँ

नेताओं ने खाए हैं शहीदों के क़फन भी
भारत हूँ मैं और शर्म से धरती में गड़ा हूँ

शोहरत की बुलन्दी पे भी जा कर नहीं भूला
मिट्टी में मिलूंगा ही मैं, मिट्टी का घड़ा हूँ

मौलिक व अप्रकाशित

एक मजाकिया भी :)
कूचे की सभी लड़कियां हैं मेरी दीवानी
लेकिन मैं हनुमान का हूँ भक्त, छड़ा हूँ

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Comment

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Comment by दिनेश कुमार on June 9, 2015 at 9:49pm

हौसला अफ़्ज़ाई के लिए बहुत शुक्रिया आदरणीय गिरिराज सर जी.

Comment by दिनेश कुमार on June 9, 2015 at 9:48pm

हौसला अफ़्ज़ाई के लिए बहुत शुक्रिया आदरणीय भाई वीनस केसरी जी.

आप ने ग़लती ठीक पकडी है। चूक हुई है मुझसे . बहुत आभार . Will delete पुछल्ला.

Comment by दिनेश कुमार on June 9, 2015 at 9:45pm

हौसला अफ़्ज़ाई के लिए बहुत शुक्रिया आ.krishna mishra 'jaan'gorakhpuri साहब.

Comment by दिनेश कुमार on June 9, 2015 at 9:43pm

हौसला अफ़्ज़ाई के लिए बहुत शुक्रिया आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर जी . आभार .

Comment by दिनेश कुमार on June 9, 2015 at 9:42pm

हौसला अफ़्ज़ाई के लिए बहुत शुक्रिया आदरणीय भाई शिज्जू जी .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 5, 2015 at 10:12am

आदरणीय दिनेश भाई , अच्छी गज़ल हुई है दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by वीनस केसरी on June 4, 2015 at 1:13pm

दिनेश साहब बहुत खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई ...

पुछल्ला को एक बार फिर से देखें .. मेरे ख्याल से हनु/मा/न २२१ होता है

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 3, 2015 at 10:50pm

बहुत ही बेहतरीन मुकम्मल गज़ल हुयी आ० दिनेश सर! हर शेर लाजवाब!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 3, 2015 at 10:03pm

नेताओं ने खाए हैं शहीदों के क़फन भी
भारत हूँ मैं और शर्म से धरती में गड़ा हूँ

शोहरत की बुलन्दी पे भी जा कर नहीं भूला
मिट्टी में मिलूंगा ही मैं, मिट्टी का घड़ा हूँ----------------sundar gajal .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 3, 2015 at 7:13pm

बहुत खूूब आदरणीय दिनेश जी बहुत बहुत बधाई इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिये

कृपया ध्यान दे...

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