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तृषा जीवन की …

न स्याम भई न श्वेत भयी …


न स्याम भई न श्वेत भयी
जब काया मिट के रेत भयी
लौ मिली जब ईश की लौ से
भौतिक आशा निस्तेज भयी
यूँ रंग बिरंगे सारे रिश्ते
जीवन में सौ बार मिले
मोल जीव ने तब समझा
जब सुख छाया निर्मूल भयी
सब थे साथी इस काया के
पर मन बृंदाबन सूना था
अंश मिला जब अपने अंश से
तब तृषा जीवन की तृप्त भयी

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 19, 2015 at 3:55pm

बढ़िया भाव सरना जी .

Comment by Hari Prakash Dubey on May 18, 2015 at 11:18pm

न स्याम भई न श्वेत भयी..........सुन्दर  दर्शन /......सब थे साथी इस काया के ...पर मन बृंदाबन सूना था .......अंश मिला जब अपने अंश से .....तब तृषा जीवन की तृप्त भयी//   बहुत  बढ़िया  आदरणीय   सुशील सरना  जी ! 

Comment by Shyam Narain Verma on May 18, 2015 at 10:17am
इस खूबसूरत  रचना की हार्दिक बधाई
Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on May 18, 2015 at 8:10am

आदरणीय सुशील सरना जी इस सुंदर प्रस्तुति के लिये बधाई ...सादर 

Comment by Samar kabeer on May 17, 2015 at 5:45pm
जनाब सुशील सरना जी ,आदाब,सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।
Comment by मनोज अहसास on May 17, 2015 at 4:32pm
सादर नमन
इस रचना को
जिसे पढ़ कर प्रभु प्रेम से मन भर गया

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