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ग़ज़ल -नूर हमनें ये जिस्म पाप का गट्ठर बना दिया.

गागा लगा लगा/ लल/ गागा लगा लगा

आवारगी ने मुझ को क़लन्दर बना दिया
कुछ आईनों ने धोखे से पत्थर बना दिया.
.
जो लज़्ज़तें थीं हार में जाती रहीं सभी  
सब जीतने की लत ने सिकंदर बना दिया.
.
नाज़ुक से उसने हाथ रखे धडकनों पे जब  
तपता सा रेगज़ार समुन्दर बना दिया.
.
एहसास सब समेट लिए रुख्सती के वक़्त
दीवानगी-ए-शौक़ ने शायर बना दिया. 
.
जो उस की राह पे चले मंज़िल उन्हें मिले  
बाक़ी तो बस सफ़र ही मुकद्दर बना दिया.
.
उसने हमें नवाज़ दिया ख़ुद उसी का घर 
हमनें ये जिस्म पाप का गट्ठर बना दिया.
.
कैसे मुजस्मासाज़ तुझे शुक्रिया कहूँ 
कंकर था मैं तराश के शंकर बना दिया.
.
निलेश "नूर" 
मौलिक/ अप्रकाशित 

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 15, 2015 at 10:47pm

शुक्रिया आ. डॉ आशुतोष जी 

Comment by Ayub Khan "BismiL" on May 15, 2015 at 2:03pm

bahut khooob janaab behtreen ashaar se saji ek shaandaar aur murassa gazal 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 15, 2015 at 1:15pm

आदरणीय नूर जी इस ग़ज़ल के लिए हादिक बधाई सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 15, 2015 at 12:24pm

शुक्रिया आ. समर साहब. 
शायर और शाइर दोनों उच्चारण सही हैं..
सादर  

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 15, 2015 at 12:22pm

शुक्रिया आ. मिथिलेश जी 

Comment by Samar kabeer on May 15, 2015 at 10:28am
जनाब निलेश "नूर" जी ,आदाब,बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल से नवाज़ा है आपने ,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।

"शायर"-शाइर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 15, 2015 at 2:37am

ये नूर का कमाल कि मिथिलेश क्या कहे 

दिन आज का ग़ज़ल ने कि शुभकर बना दिया 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 14, 2015 at 8:43pm

शुक्रिया आ. दिनेश जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 14, 2015 at 8:43pm

शुक्रिया आ.निर्मल जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 14, 2015 at 8:43pm

शुक्रिया आ मनोज जी 

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