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अपेक्षा है तुझे....! (अतुकांत)

सब कुछ

है तेरा

तुझ पर, तेरे कारण ही

और तेरे ही लिए हैं

अपने दामन में पाले हैं तूने

समान, असमान भाव से 

कांटे भी, फूल भी

देव और दानव  

जल भी तेरा, थल भी

मरुस्थल और तेरे ही है पर्वत

तेरी ही नदियाँ

तेरा ही आश्रय है, सागर को

अश्विन से फाल्गुन तक

सिकुड़ती है,  तू

ज्येष्ठ की दहक में 

तपती और पिघलती रही

अथाह सहनशीलता है,  तुझमे

इस तरह सिकुड़ने और

पिघलने के बाद

बस!  एक अपेक्षा है तेरी

 

कोई बरस जाए तुझ पर

भर दे, तुझमें

इतनी तृप्ति और नमी 

कि, तू संतृप्त होकर

बिखेर दे सारे जहाँ में

खुशियाँ ही खुशियाँ

सर्वस्व है तू

फिर भी, हमेशा की तरह

इस वर्ष भी

अपेक्षा है तुझे...!

   जितेन्द्र पस्टारिया

(मौलिक व् अप्रकाशित)

 

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 13, 2015 at 12:21am

आपकी विस्तृत स्नेहिल प्रतिक्रिया व् रचना की सराहना पाकर, बहुत संबल मिला ,आदरणीया कांता जी. आपका ह्रदय से आभारी हूँ

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 13, 2015 at 12:19am

आदरणीय विजय जी, आपको कविता अच्छी लगी, लेखनकर्म सार्थक हुआ. आपका ह्रदय से आभारी हूँ

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 13, 2015 at 12:18am

आदरणीय समर साहब, कविता पर आपकी उपस्थिति व् सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार

सादर!

Comment by kanta roy on May 12, 2015 at 6:42pm
कोई बरस जाए तुझ पर
भर दे, तुझमें
इतनी तृप्ति और नमी 
कि, तू संतृप्त होकर
बिखेर दे सारे जहाँ में
खुशियाँ ही खुशियाँ....... पढकर मन भी तृप्त हुआ ..... इतने सुंदर भाव .... दिल खोल कर हृदय के समस्त भावों को मानों कागज पर उकेर दिया .... कागज भी संतृप्त हुई ... लेखन भी साकार हुआ .... बधाई
Comment by vijay nikore on May 12, 2015 at 4:41pm

आपकी लघु-कथा तो अच्छी लगती ही हैं, कविता भी अच्छी लगी।

Comment by Samar kabeer on May 12, 2015 at 10:29am
जनाब जितेन्द्र पस्टारिया जी ,आदाब ,सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें।
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 12, 2015 at 12:28am

आदरणीय डा.विजय जी, रचना आपका आशीर्वाद पाकर, धन्य हुई. आपका ह्रदय से आभारी हूँ

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 12, 2015 at 12:26am

आदरणीय गिरिराज जी, अतुकांत पर आपकी स्वीकारोक्ति , मेरा मनोबल बड़ा रही है. आपकी सराहना के लिए ह्रदय से आभारी हूँ.यह अतुकांत मैंने लाइव महोत्सव अंक- ५५ में प्रस्तुति हेतु कोशिश की थी किन्तु नेट की समस्या रहते ,मैं प्रस्तुत नहीं कर पाया.

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 12, 2015 at 12:21am

आदरणीय मनोज जी, रचना पर आपकी सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार

सादर!

Comment by Dr. Vijai Shanker on May 11, 2015 at 10:40pm
सुन्दर , कल्याण की भावना से ओतप्रोत , बधाई, प्रिय जीतेन्द्र जी, सादर।

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