For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जानवर होने का नाटक , भूँक भूँक के -- अतुकांत ( गिरिराज भंडारी )

जानवर होने का नाटक भूँक भूँक के

**********************************

जंगल में

जानवरों में फँसा हुआ मैं

जानवर ही लगता हूँ , व्यवहार से

पहनी नज़र में

ऐसा व्यवहार सीख लिया है मैनें

जिससे इंसानियत शर्मशार भी न हो

और जानवर भी लग जाऊँ थोड़ा बहुत

लगना ही पड़ता है , अल्पमत में हूँ न ,

 

और काम बाक़ी है , एक बड़ा काम

मुझे तलाश है इंसानों की

जो छुप गये लगते हैं , भय से ,

जानवरों में एकता जो है , बँटे हुये इंसान का डर भी स्वाभाविक है 

कुछ ने तो नस्ल परिवर्तन भी करा लिया है

कहाँ और कैसे खोजूँ , कैसे एक साथ कर लूँ इंसानो को ?

काम भारी है , खोज लूँ तो बहुमत हो जाये , इंसानो का 

क्योंकि , गिनती मे कम नहीं हैं हम , बँट गये हैं

 

मैं उनके सामनें ,

जो, सच न सहन कर सकें , पचा न सकें

सच ज़ाहिर करना सही नहीं समझता

और न ही

मैं ज़हर पीने वालों मे से नहीं हूँ

पिलाऊँगा उनको

जो हक़दार हैं ज़हर के

मै हक़ को हक़दार तक पहुँचाने का बीड़ा उठाया है

बस , साधन मेरा अपना होगा , तरीका मेरा अपना होगा

और समय,  जितना लगे  , या जीते जी

तुमने मेरे भूँकने , दहाड़ने , चिंघाड़ने ,

मिमियाने से ,

मुझे जानवर समझ कर कुछ गलत नहीं किया

ये तो तमगा है

मेरे असली जैसे नकली पन के लिये

 

तब तक के लिये ,

जब तक इंसान बहुमत में न आ जायें

और किसी को न करना पड़े कभी भी

जानवर होने का नाटक

भूँक भूँक के 

***************  

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 960

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 5, 2015 at 4:33pm

आदरणीय श्री सुनील  भाई , हौसला अफज़ाई का बेहद शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 5, 2015 at 4:32pm

आदरणीय समर कबीर भाई , रचना के अनुमोदन के लिये आपका बहुत शुक्रिया ।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 5, 2015 at 9:55am

मै हक़ को हक़दार तक पहुँचाने का बीड़ा उठाया है

बस , साधन मेरा अपना होगा , तरीका मेरा अपना होगा

और समय,  जितना लगे  , या जीते जी.....गजब की कलम चलाई ,सर आपने. इस शानदार प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on May 5, 2015 at 7:38am

बहुत बढ़िया प्रस्तुति एक सन्देश देती हुई ...बधाई जनाब ...सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on May 5, 2015 at 2:02am
मनुष्य जो है , वही रहे , तो उसकी तर्रकी स्वतः है , पर यहां तो जीवन का अस्तित्व ही खतरे में पड़ रहा है,
अादमी आदमी छोड़ सबकुछ बन रहा है,
इंसानियत से वाकफियत खो रहा है ,
उसको राक्षसों में ढूंढ रहा है ,
खुद जानवर बन कर
सुरक्षित अनुभव कर रहा है ,
आदमी जानवर बन रहा है।
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , आपके लेखन का दायरा बढ़ रहा है, इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई,सादर।
Comment by shree suneel on May 5, 2015 at 1:10am
काम भारी है , खोज लूँ तो बहुमत हो जाये , इंसानो का
क्योंकि , गिनती मे कम नहीं हैं हम , बँट गये हैं/
सही बात आदरणीय.. . अर्थपूर्ण रचना के लिए बधाईयाँ..
Comment by Samar kabeer on May 4, 2015 at 11:42pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी,आदाब,कमाल कर दिया भाई,एक के बाद एक अच्छी रचना,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
8 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहों पर दोहे लिखे, दिया सृजन को मान। रचना की मिथिलेश जी, खूब बढ़ाई शान।। आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service