For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल --उमेश-------------पत्थरों के शहर में हुआ हादसा

बन्द कर दो सितम अब खुदा के लिये
जुल्म कितना करोगे अना के लिये

कत्ल करदे मगर यूँ न बदनाम कर
हाथ उठने लगे हैं दुआ के लिये

इस कदर मुफलिसी दे न मेरे खुदा
पास पैसे न हों जब दवा के लिये

चींखती रह गयी बेगुनाही मेरी
है गुनाह भी जरूरी सजा के लिये

बाद जाने के तेरे बचा कुछ नहीं
जी रहा हूँ फ़कत मैं क़जा के लिये

पत्थरों के शहर में हुआ हादसा
मर गया इश्क देखो व़फा के लिये

उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित



Views: 499

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 5, 2015 at 5:33pm

बहुत खूब ..वाह

Comment by नादिर ख़ान on May 5, 2015 at 5:08pm

इस कदर मुफलिसी दे न मेरे खुदा
पास पैसे न हों जब दवा के लिये

चींखती रह गयी बेगुनाही मेरी
है गुनाह भी जरूरी सजा के लिये

बहुत खूबसूरत गज़ल कही आदरणीय उमेश जी बहुत मुबारकबाद ....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 5, 2015 at 4:42pm

खूब्सूरत गज़ल के लिये हार्दिक बधाइयाँ , आदरणीय ॥

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 5, 2015 at 11:18am

इस कदर मुफलिसी दे न मेरे खुदा
पास पैसे न हों जब दवा के लिये   वाह वाह! इस शेर के लिए अलग से दाद हाजिर है!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 5, 2015 at 11:16am

वाह आ० उमेश सर!बेहतरीन गजल हुयी है! हार्दिक बधाई

Comment by वीनस केसरी on May 5, 2015 at 3:57am

चींखती रह गयी बेगुनाही मेरी
है गुनाह भी जरूरी सजा के लिये

वाह क्या कहने

Comment by Dr. Vijai Shanker on May 5, 2015 at 2:46am
बहुत खूब, बधाई, आदरणीय उमेश जी, सादर।
Comment by Samar kabeer on May 4, 2015 at 3:07pm
जनाब अमेश कटारा जी,आदाब,बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने ,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |

एक दो मिसरों में बदलाव ज़रूरी है,अपने सुझाव रख रहा हूँ :-

"चींखती रह गयी बेगुनाही मेरी
है गुनाह भी जरूरी सजा के लिये"

इस शैर को इस तरह कर लें :-

"चीख़ती रह गई बेगुनाही मेरी
है गुनह भी ज़रूरी सज़ा के लिये"

"गुनह" गुनाह का मुख़फ़्फ़फ़ (short form) है|

"पत्थरों के शहर में हुआ हादसा
मर गया इश्क देखो व़फा के लिये"

सही शब्द है शह्र,तरतीब बदलने से यह मिसरा दुरुस्त हो जाएगा :-

"शह्र में पत्थरों के हुवा हादसा
मर गया इश्क़ देखो वफ़ा के लिये "

कृपया अन्यथा न लें |
Comment by Shyam Narain Verma on May 4, 2015 at 2:40pm
क्या खूब ग़ज़ल कही है आपने वाह बहुत बहुत बधाई इस बेहतरीन रचना के लिये
Comment by मनोज अहसास on May 4, 2015 at 2:37pm
बहुत प्रवाह पूर्ण भावना प्रधान २चना

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागत है"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
Thursday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Apr 14

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Apr 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service